आज लगन का अंतिम दिन, अब पांच माह बाद ही बजेगी शहनाई

 आज लगन का अंतिम दिन, अब पांच माह बाद ही बजेगी शहनाई

लखनऊ। निज संवाददाता

इस साल विवाह का सबसे सर्वोत्तम मुहूर्त मंगलवार को है। इसके बाद विवाह के लिए पांच महीनों का लम्बा इंतजार करना पड़ेगा। पहली जुलाई से देवशयनी एकादशी से चातुर्मास मास प्रारम्भ होकर 25 नवम्बर तक रहेगा। इस बीच विवाह आदि कार्य नहीं होगें। 16 दिसम्बर से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने से खरमास लग जायेगा और मकर संक्रान्ति 14 जनवरी 2021 तक विवाह आदि कार्य नहीं होंगे। ऐसे में 30 जून को विवाह मुहूर्त का अंतिम सर्वोत्तम मुहूर्त होने से शहर में विवाह समारोहों की कतार ही लग गई है। ऐसे में प्रतिष्ठित पंडितों की खासी डिमांड हो गई है। साल की सबसे तेज सहालग होने पर भी कोरोना संकट के देखते महज दो सौ के लगभग ही विवाह समारोह ही हो पा रहे हैं।

पं.शक्तिधर त्रिपाठी के अनुसार मंगलवार को आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर विशाखा नक्षत्र और शिवयोग दिन के तीन बजे से रात्रि के तीन बजे तक मिलेगा। यह इस वर्ष का अंतिम सर्वोत्तम विवाह का शुभ योग है।

अब केवल 11 विवाह मुहूर्त

ज्योतिषाचार्य एस.एस.नागपाल व ज्योतिषाचार्य प्रशांत तिवारी ने मुताबिक इस साल 2020 में विवाह के मुहूर्त नवम्बर महीने में 26, 29, 30 और दिसम्बर में 1, 2, 6, 7, 8, 9, 10 व 11 ही हैं। वर्ष 2021 में गुरु 19 जनवरी से 15 फरवरी तक 27 दिन अस्त रहेंगे और शुक्र 17 फरवरी से 17 अप्रैल तक 60 दिन अस्त रहेंगे जिसके कारण 18 जनवरी को एक विवाह मुहूर्त एवं 15 फरवरी को एक विवाह मुहूर्त है मार्च 2021 में विवाह मुहूर्त नहीं है। 14 मार्च से 14 अप्रैल मीन खरमास रहेगा जिसके कारण विवाह आदि कार्य नहीं होगें 22 अप्रैल 2021 से विवाह मुहूर्त प्रारम्भ होगें। उनके अनुसार अगले साल 2021 में भी महज 51 विवाह मुहूर्त है।

पांच माह शयन करेंगे भगवान विष्णु

ज्योतिषाचार्य आनंद दुबे व पं. इंदीवर त्रिपाठी ने बताया कि 1 जुलाई को ‘देवशयनी एकादशी है। इस दिन से चातुर्मास शुरू होता है। इस बार यह मलमास एक माह का हो जाने के कारण पांच माह का होगा।

इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीर-सागर में शयन करते है। ऐसा भी मत है कि भगवान विष्णु इस दिन से पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इन चार माह में मांगालिक कार्य नहीं किये जाते है। चार माह बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रबोधिनी एकादशी को योग निद्रा से श्रीहरि विष्णु जाग्रत होते हैं। इन चार माह में तपस्वी भ्रमण नहीं करते एक ही स्थान पर रहकर तपस्या करते है।

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