राम मंदिर भूमि पूजन में क्यों शामिल नहीं हुए अकाल तख्त के जत्थेदार?
अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भूमि पूजन कार्यक्रम से किनारा करके पंजाब में नई सियासी बहस को जन्म दे दिया है.
राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम अयोध्या में बुधवार को संपन्न हो गया, लेकिन इसने पंजाब की सियासत को गर्म कर दिया है. दरअसल, अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भूमि पूजन कार्यक्रम से किनारा करके पंजाब में नई सियासी बहस को जन्म दिया है. खालिस्तान को लेकर दो बार विवादित बयानों के कारण कार्यकारी जत्थेदार चर्चा में आ चुके हैं.
ज्ञानी हरप्रीत सिंह के फैसले से पंजाब के बीजेपी नेताओं में नाराजगी है. इन नेताओं ने अकाल तख्त के जत्थेदार की आलोचना करते हुए कहा है कि 1858 में जब निहंग सिखों ने विवादित ढांचे पर कब्जा करके दीवारों पर राम नाम लिख दिया था तो उनको किसी ने न्योता नहीं दिया था.
वरिष्ठ बीजेपी नेता और पार्टी के पूर्व राज्य सचिव विनीत जोशी ने कहा है कि अकाल तख्त के कार्यकारी प्रमुख ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इस पवित्र मौके पर अयोध्या न पहुंचकर सदियों पुराने हिंदू सिख भाईचारे पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने अयोध्या में 5 अगस्त के कार्यक्रम के वीडियो को रीट्वीट भी किया.
जब इस मामले पर अकाली दल के नेताओं से बात की गई तो उन्होंने अकाल तख्त के कार्यकारी प्रमुख के फैसले को निजी बताते हुए विवाद से किनारा करने की कोशिश की. बता दें कि बादल परिवार की सरपरस्ती वाला शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी एनडीए में सबसे पुराने पार्टनर हैं.
अकाली दल के महासचिव और प्रवक्ता डॉ. दलजीत चीमा ने कहा कि राम मंदिर निर्माण का स्वागत सभी धर्मों के लोगों ने किया है और अकाली दल ने भी लोगों को इसकी शुभकामना दी है. चीमा ने कहा कि सिख गुरुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा करके आपसी भाईचारे का संदेश दिया था.
ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने खालिस्तानी संगठनों के दबाव के चलते राम मंदिर निर्माण भूमि पूजन से दूरी बनाए रखी.
ज्ञानी हरप्रीत सिंह का विवादों से पुराना नाता
हाल ही में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि अगर सिखों को खालिस्तान मिल जाए तो वह खुशी से स्वीकार करेंगे. इससे पहले उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को देश विरोधी करार दिया था.
अकाली दल से जुड़े सूत्रों के मुताबिक ज्ञानी हरप्रीत सिंह इसलिए भी राम मंदिर निर्माण से जुड़े भूमि पूजन में नहीं गए क्योंकि उनको जो न्योता दिया गया था, वह एक तो राष्ट्रीय सिख संगत के माध्यम से भेजा गया और दूसरे आमंत्रण पत्र उनको सीधे ना देकर उनके कार्यालय में दिया गया.
36 का आंकड़ा
गौरतलब है कि अकाल तख्त और आरएसएस के संगठन राष्ट्रीय सिख संगत का पहले से ही 36 का आंकड़ा रहा है. अकाल तख्त राष्ट्रीय सिख संगत को सिख धर्म विरोधी मानता है. अकाल तख्त का मानना है कि आरएसएस राष्ट्रीय सिख संगत के जरिए सिखों में हिंदुत्व फैलाना चाहता है.
अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह (फोटो-मनजीत)
ज्ञानी हरप्रीत सिंह के अयोध्या न जाने के पीछे कोई भी कारण रहा हो, लेकिन इससे दोनों समुदायों के बीच अच्छा संकेत नहीं गया है. माना जा रहा है कि इसका भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल बादल के गठबंधन पर असर पड़ सकता है.
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अकाली दल के नेता अकाल तख्त के कार्यकारी प्रमुख सहित दूसरे सिख धार्मिक नेताओं के राम मंदिर निर्माण भूमि पूजन कार्यक्रम से दूर रहने पर बयान देने से परहेज कर रहे हैं. हालांकि अकाल तख्त और एसजीपीसी को अकाली दल दो स्वतंत्र संस्थाएं मानता है लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं है कि इसी पार्टी का इन दोनों संस्थाओं पर दबदबा है.
माना जा रहा है कि अकाल तख्त प्रमुख और दूसरे धार्मिक नेताओं के राम मंदिर निर्माण से जुड़े भूमि पूजन कार्यक्रम से दूर रहने के पीछे अकाली दल की सोची-समझी चुनावी रणनीति हो सकती है. भले ही डॉ. दलजीत सिंह चीमा जैसे वरिष्ठ अकाली दल के नेता इससे इंकार कर रहे हों .
गौरतलब है कि भविष्य में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के चुनाव होने हैं. दो साल बाद पंजाब विधानसभा चुनाव होने हैं. अकाली दल की इन दोनों महत्वपूर्ण चुनावों पर नजर है.
अकाली दल पर उसके अपने ही नेता पंथक एजेंडा (धार्मिक एजेंडा) दरकिनार करने का आरोप लगा रहे हैं. यही कारण है कि कई वरिष्ठ अकाली नेता पार्टी से नाता तोड़कर अपनी दो अलग पार्टिया बना चुके हैं.
अकाली दल वापस अपने खोए हुए पंथक एजेंडे को हासिल करना चाहता है. अकाल तख्त प्रमुख के आरएसएस विरोधी और खालिस्तान की मांग को हवा देने के बयानों के बाद बीजेपी नेता नाखुशी का इजहार कर चुके हैं.
पंजाब बीजेपी के कई सीनियर नेता अकाली दल के साथ गठजोड़ खत्म कर ‘एकला चलो’ के रास्ते पर चलने की बात कर चुके हैं. अब रही सही कसर अकाल तख्त प्रमुख की ओर से राम जन्म भूमि पूजन कार्यक्रम से बनाई गई दूरी ने पूरी कर दी है.
देखना दिलचस्प होगा कि क्या दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी-अकाली दल गठबंधन कायम रह पाता है या फिर बीजेपी अपने ही बूते पंजाब में अपना राजनीतिक आधार मजबूत करने की कोशिश करती है और राम नाम के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है.