माँ के लिए हर दिन है विशेष…
वेस्टर्न कल्चर में गोरों ने माता-पिता, भाई-बहन को याद करने के लिए दिन तय कर दिए। मदर्स डे, फादर्स डे, सिस्टर्स डे, ब्रदर्स डे आदि। हम भी उसी ढ़र्रे पर चल दिए है| इन रिश्तों को सिर्फ एक दिन में समेट दिया। माँ, ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली शब्द, इसकी ध्वनि में असीम प्रेम की गूंज सुनाई देती है।
माँ! के मातृत्व भरे अपार प्रेम को हम सिर्फ एक दिन में समेट रहे है? सिर्फ एक दिन, माँ को याद करें। अजीब दिन है। जहाँ माँ है, वहाँ हमारा माँ के लिए प्रेम नहीं है। परन्तु जहाँ माँ नहीं है, वहाँ माँ के लिए हमारा प्रेम हिलोरे मार उमड़ता है। दुनिया को बतलाते है कि हम माँ को कितना प्रेम करते है। परन्तु हमारे इस प्रेम से माँ पूर्णतया
है।
माँ! निस्वार्थ भाव वाली वह महिला, जब पिता के घर से बेटी का दायित्व वहन कर, शादी करके बहू बनकर पति के घर को आती है, तब पत्नी, भाभी, माँ के पदों को संभालते हुए, एक भी दिन की छुट्टी लिए बगैर, निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का जिम्मेदारी के साथ वहन करती है। घर बनाती है। थकावट की शिकन चेहरे पर नहीं आने देती है। अपने दर्द को पीते हुए; कर्तव्य में लगी रहती है।
माँ, हम लोगों के लिए बूढ़ी हो सकती है। लेकिन हम माँ के लिए आज भी वही छोटे लल्ला है। उसके लिए कुछ न बदला। आज भी वही जज्बात, प्रेम रत्ती भर कोई अंश इधर-उधर नहीं। लेकिन हां! हम माँ को इधर-उधर कर अवश्य कर देते है।
माँ, अपने चार बच्चों को उसी प्रेम, मातृत्व के साथ पालती है। संस्कार देती है। परन्तु हम चार के लिए एक माँ बोझ बन जाती है। चारों में उसे बांटने को तत्पर रहते है।
बेटा, घर से बाहर हो। तब माँ फ़ोन करके सुबह-शाम पूछती है। कि “बेटा खाना खाया की नहीं? अच्छे से पेट भरा है की नहीं?” जब हम घर आते है। तब हमें अच्छा खाना देती है। यही सोच रखकर कि उसके लल्ला को बाहर ऐसा खाना नही मिलता है।
परन्तु जब हम माँ से पूछने लायक हो जाते है। कि माँ, खाना खाया की नहीं? तब यकीनन बहुतों के पास यह शब्द ही नहीं होता है। परन्तु जब यह शब्द आता है। तब माँ नहीं रहती है।
माँ, के लिए जगह ह्रदय में होती है। परन्तु आज माँ ह्रदय से निकलकर गर्दन, कलाई, बाजू पर सिर्फ एक स्टालिश शब्द भर बनकर टैटू के रूप में चस्पा नजर आता है।
माँ को याद करने के लिए, सिर्फ एक दिन। ब्रह्मांड में माँ को भगवान व गुरु से उच्च स्थान दिया है। क्योंकि माँ बच्चे की प्रथम गुरु होती है। माँ की उंगली पकड़कर चलना सीखते है। दुनिया को समझने लायक होते है। लेकिन जब माँ को हमारी उंगली की आवश्यकता होती है। तब हमारा हाथ माँ के हाथ मे नहीं होता है।
यह आज की कड़वी सच्चाई है। कि माँ सिर्फ फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम स्टेटस के लिए हो चली है। माँ के लिए हमारा प्रेम उनकी बातें सुनना, उन्हें अमल में लाना। इतना भी कर दे। तो बहुत काफी है। यही उनकी सेवा होगी।
माँ के लिए प्रेम बताने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं है…..क्योंकि वह माँ है।
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