बिहार विधानसभा का भवन आज 100 साल का हो गया
बिहार विधानसभा का भवन आज 100 साल का हो गया। 7 फरवरी 2021 को इस भवन की शताब्दी पूरी हो रही है। ऐसे में हमने जब बिहार विधानसभा के पन्नों को पलटने की कोशिश की तो पाया कि इस भवन ने अपनी झोली में बेशुमार यादगारियां संजो रखी हैं। रोमन (इतावली) डिजाइन की खूबियों को समेटे इस भवन ने कई सरकारें, कई मुख्यमंत्री, कई विधानसभा अध्यक्ष देखे। आजादी के बाद सत्रहवीं विधानसभा आते-आते हजारों की संख्या में नए-पुराने सदस्यों को इसने पुष्पित-पल्लवित होते देखा।
अंग्रेजी शासन में ही बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन चुका था। पर बिहार के लोग अपनी सक्रियता एवं कर्मठता के बूते अपनी अलग पहचान कायम रखने में सफल रहे। बिहार को बंगाल से अलग करने की मांग लगातार उठती रही। इसको लेकर सबसे महत्वपूर्ण दिन 12 दिसम्बर 1911 था। उस दिन ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में भारतीय परिषद अधिनियम 1909 के आधार पर बिहार एवं उड़ीसा को मिलाकर बंगाल से पृथक राज्य बनाने की घोषणा की।
इसका मुख्यालय पटना निर्धारित हुआ। 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर बिहार एवं उड़ीसा राज्य अस्तित्व में आया। सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली इस राज्य के पहले उप राज्यपाल बने। नये राज्य के विधायी प्राधिकार के रूप में 43 सदस्यीय विधान परिषद का गठन किया गया। इसमें 24 सदस्य निर्वाचित एवं 19 सदस्य उप राज्यपाल द्वारा मनोनीत थे। यही परिषद संख्या बल में परिवर्तनों से गुजरते हुए 243 सदस्यों के साथ आज बिहार विधानसभा के रूप में हम सबके सामने है। इस विधायी परिषद की पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को बांकीपुर स्थित पटना कॉलेज के सभागार में हुई थी। पटना कॉलेज देश का सातवां सबसे पुराना महाविद्यालय है।
भारत सरकार के अधिनियम 1919 द्वारा भारत में नये शासन पद्धति की शुरुआत हुई। इसके अनुसार केन्द्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका का प्रावधान किया गया, जिसे संघीय विधानसभा एवं राज्य परिषद का नाम दिया गया। यह कालांतर में लोकसभा एवं राज्यसभा के रूप में तब्दील हुआ। इसी अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वितंत्रीय शासन व्यवस्था की शुरुआत की गई। इसमें प्रशासनिक विषयों को दो श्रेणियों आरक्षित एवं हस्तांतरित में बांटा गया। बिहार एवं उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करते हुए उप राज्यजपाल की नियुक्ति की गई। लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा इस प्रांत के पहले गवर्नर नियुक्त हुए। बिहार एवं उड़ीसा प्रांतीय परिषद में निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्यों की संख्या (क्रमश: 76 एवं 27) 103 कर दी गयी। इस विधायी परिषद के लिए एक भवन एवं सचिवालय की जरूरत के मद्देनजर 1920 में भवन का निर्माण आरंभ हुआ। यही परिषद भवन आज बिहार विधानसभा का मुख्य भवन है। यहां पहली बैठक 7 फरवरी 1921 को सर वाल्टर मोड की अध्यक्षता में हुई। बिहार के पहले राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने इसे संबोधित किया।
प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत 1935 में हुई, 1937 में पहला चुनाव
प्रांतों में नई शासन व्यवस्था लागू होने के तत्काल बाद ही प्रांतीय विधायी परिषद को अधिक अधिकार देने की मांग उठने लगी। तब महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता की लड़ाई भी जोर पकड़ रही थी। भारत में चल रहे आंदोलन के दबाव में ब्रिटिश संसद द्वारा ‘भारत सरकार अधिनियम 1935’ पारित किया गया। इस अधिनियम के तहत बिहार एवं उड़ीसा अलग-अलग स्वतंत्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आए। प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत भी इसी अधिनियम से हुई।
अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधान के रूप में कई प्रांतों में द्विसदनीय विधायिका बनी। बिहार में निम्न सदन के रूप में विधानसभा एवं उच्च सदन के रूप में विधान परिषद का गठन हुआ। द्विसदनीय व्यवस्था में बिहार विधानसभा में सदस्यों की संख्या 152 कर दी गई। जनवरी 1937 में बिहार विधानसभा के गठन के लिए चुनाव सम्पन्न हुए। 20 जुलाई 1937 को डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में पहली सरकार गठित हुई। 22 जुलाई को दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन हुआ और 25 जुलाई 1937 को रामदयालु सिंह बिहार विधानसभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
अबतक के विस अध्यक्ष व उनके कार्यकाल
1. रामदयालु सिंह 23 जुलाई 1937 से 11 नवम्बर 1944
2. बिंधेश्वरी प्रसाद वर्मा 25 अप्रैल 1946 से 14 मार्च 1962
3. डॉ. लक्ष्मी नारायण सुधांशु 15 मार्च 1962 से 15 मार्च 1967
4. धनिकलाल मंडल 16 मार्च 1967 से 10 मार्च 1969
5.रामनारायण मंडल 11 मार्च 1969 से 20 मार्च 1972
6. हरिनाथ मिश्र 21 मार्च 1972 से 26 जून 1977
7. त्रिपुरारी प्रसाद सिंह 28 जून 1977 से 22 जून 1980
8. राधा नंदन झा 24 जून 1980 से 1 अप्रैल 1985
9. शिवचन्द्र झा 4 अप्रैल 1985 से 23 जनवरी 1989
10. मो. हिदायतुल्लाह खां 27 मार्च 1989 से 19 मार्च 1990
11. गुलाम सरवर 20 मार्च 1990 से 9 अप्रैल 1995
12. देव नारायण मंडल 12 अप्रैल 1995 से 6 मार्च 2000
13. सदानंद सिंह 9 मार्च 2000 से 28 जून 2005
14. उदय नारायण चौधरी 31 नवम्बर 2005 से 28 नवम्बर 2015
15. विजय कुमार चौधरी 2 दिसम्बर 2015 से 15 नवम्बर 2020
16. विजय कुमार सिन्हा 25 नवम्बर 2020 से
आरंभ में विस के सदस्यों की संख्या थी 330
सन् 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ। इसके प्रावधानों के अनुरूप 1952 एवं 1957 में पहला एवं दूसरा आम चुनाव सम्पन्न हुआ। 1952 के चुनाव में विधानसभा के लिए 330 सदस्य निर्वाचित हुए जबकि एक सदस्य का मनोनयन हुआ। 1956 में राज्य पुर्नगठन आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर बिहार की सीमा में फिर बदलाव हुआ। इससे विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटकर 318 हो गयी, हालांकि मनोनीत सदस्य एक बचे रहे। सन् 1962, 67, 69 (मध्यावधि चुनाव) एवं 1972 के चुनावों में सदस्यों की संख्या 319 ही रही। सन् 1977 में जनसंख्या वृद्ध के अनुपात में बिहार में विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या में छह का इजाफा हुआ। 324 निर्वाचित और एक मनोनीत अर्थात कुल सदस्य हो गए 325।
सन् 2000 में भारतीय संसद से पुनर्गठन विधेयक पारित होने के बाद झारखंड के रूप में बिहार से अलग होकर नया राज्य बना। इसमें बिहार के 324 निर्वाचित सदस्यों में से 81 सदस्य और एक मनोनीत सदस्य झारखंड विधानसभा के सदस्य हो गए। इस तरह बिहार विधानसभा में कुल 243 सदस्यों की संख्या रह गयी। आज बिहार विधान परिषद में सदस्यों की संख्या 75 है। 1930 में यह सिर्फ 30 थी। संविधान लागू होने के बाद यह बढ़कर 72 हुई और 1958 में 96 हो गई। 2000 में झारखंड के बंटवारे के बाद विप में 75 सदस्य संख्या बची।
बिहार में 1001 दिन रहा है राष्ट्रपति शासन
बिहार में आजादी के बाद से अबतक कुल आठ बार में 1001 दिन का राष्ट्रपति शासन रहा है। शेष समय निर्वाचित सरकारों ने काम किया है। विधानसभा में उपलब्ध रेकार्ड के मुताबिक एक रोचक तथ्य यह भी है कि भोला पासवान शास्त्री अकेले ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जिनके शासन काल में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगा। पहली बार उनके सीएम रहते 29 जून 1968 को सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा और यह 244 दिन रहा।
दूसरी बार 4 जुलाई 1969 (227 दिन) और तीसरी बार 9 जनवरी 1972 में 70 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 30 अप्रैल 1977 को जगन्नाथ मिश्र के सीएम काल में (54 दिन), 17 फरवरी 1980 को रामसुंदर दास के मुख्यमंत्री रहते (112 दिन), छठी बार 28 मार्च 1995 को लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री रहते 7 दिन के लिए, 12 फरवरी 1999 को राबड़ी देवी के रहते 25 दिन के लिए और 7 मार्च 2005 को 262 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। जबकि सूबे में 1969 में मध्यावधि चुनाव हुआ था।