जानिये रथ सप्तमी का व्रत के बारे में , इससे लाभ कैसे मिलेगा
शास्त्रों के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी, अचला सप्तमी या आरोग्य सप्तमी कहते हैं। कहा जाता है कि इस दिन रथ पर आरुढ़ सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। रथ पर सवार सूर्य भगवान की पूजा करने से जीवन में सुख, सम्मान और आरोग्य की प्राप्ति होती है। वेदों मे कहा गया है कि सूर्य का दर्शन ही सबसे बड़ी पूजा है। सूर्य सौरमंडल का जीवन रक्षक तारा है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान सूर्य का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। सर्वप्रथम पूरी पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश फैला था।
रथ सप्तमी का व्रत करने के नियम: प्रातः काल सबसे सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान करें। गंगा आगे पवित्र नदियों में भी स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व है। स्नान के पश्चात सूर्य स्तोत्र, सूर्य कवच आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ बहुत ही फलदाई होता है। सूर्य को दीपदान करना भी बहुत कल्याणकारी है। पवित्र नदियों में दीपक प्रवाहित करना चाहिए।
सूर्य के पूजन के पश्चात व्रत रखें और शाम को फलाहार करें। इस व्रत में तेल और नमक का त्याग करें। ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति रथ सप्तमी को सूर्य की पूजा करके केवल मीठा भोजन अथवा फलाहार करते हैं उसे पूरे साल की सूर्य की पूजा करने का फल प्राप्त हो जाता है। यह व्रत सौभाग्य, संतान और संपन्नता देने वाला है।
भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन पिता तुल्य व्यक्तियों को पूर्ण पात्र अर्थात तांबे के लोटे में चावल भरकर दान करें। अनार, सेब एवं चुकंदर का भी दान कर सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य की मित्र राशियां मेष, सिंह, वृश्चिक एवं धनु लग्न वाले व्यक्तियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इससे उनको इच्छा अनुसार कामना पूर्ति होने का संकेत मिलता है।