Magh Purnima 2021: माघी पूर्णिमा व्रत आज, पढ़ें सत्यनारायण व्रत कथा
आज माघी पूर्णिमा व्रत है. व्रत की शुरुआत सुबह 5 बजकर 49 मिनट से हो चुकी है. उदया तिथि में व्रत की पूर्णिमा पड़ने के कारण भक्तों ने आज ही व्रत रखा है. हालांकि स्नान दान की पूर्णिमा कल यानी कि 27 फ़रवरी को है. पूर्णिमा के दिन भक्त व्रत रखकर पूजा पाठ करते हैं और भगवान सत्यनारायण की कथा का श्रवण करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माघी पूर्णिमा व्रत करने एवं सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने से सुख, संपत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. आइए माघी पूर्णिमा व्रत में पढ़ते हैं सत्यनारायण भगवान की कथा..
सत्यनारायण कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है एकबार विष्णु भक्त नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा. इससे उनका संतहृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में हरि कीर्तन करते क्षीरसागर पहुंच गये और स्तुतिपूर्वक बोले, ‘हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों की व्यथा हरने वाला कोई छोटा-सा उपाय बताने की कृपा करें.’ तब भगवान ने कहा, ‘हे वत्स! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है. अत: तुम्हें साधुवाद है. आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्यदायक है तथा मोह के बंधन को काट देने वाला है और वह है श्रीसत्यनारायण व्रत. इसे विधि-विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है.’
इसके बाद काशीपुर नगर के एक निर्धन ब्राह्मण को भिक्षावृत्ति करते देख भगवान विष्णु स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उस निर्धन ब्राह्मïण के पास जाकर कहते हैं, ‘हे विप्र! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं. तुम उनके व्रत-पूजन करो जिसे करने से मुनष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है. इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्व है किंतु उपवास से मात्र भोजन न लेना ही नहीं समझना चाहिए. उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं. अत: अंदर व बाहर शुचिता बनाये रखनी चाहिए और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए.’ सायंकाल में यह व्रत-पूजन अधिक प्रशस्त माना जाता है.
साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान के साथ सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था. श्रद्धा में कमी थी. वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा. समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. उसकी श्रद्धालु पत्नी ने व्रत की याद दिलायी तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे.
समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया. वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया. उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया. पीछे घर में भी चोरी हो गयी. पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गयीं. एक दिन कलावती ने किसी विप्र के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को बताया. तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान मांगा. श्रीहरि प्रसन्न हो गये और स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को छोडऩे का आदेश दिया. राजा ने उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया. घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा, फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ.
इसी प्रकार राजा तुङ्गध्वज ने वन में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा, किंतु प्रभुता के मद में चूर राजा न तो पूजास्थल पर गया, न दूर से ही प्रणाम किया और न ही गोपगणों द्वारा दिया प्रसाद ग्रहण किया. परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र, धन-धान्य, अश्व-गजादि सब नष्ट हो गये. राजा को अकस्मात् यह आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है. उसे बहुत पश्चाताप हुआ. वह तुरंत वन में गया. गोपगणों को बुलाकर काफी समय लगाकर सत्यनारायण भगवान की पूजा की. फिर उसने उनसे ही प्रसाद ग्रहण किया तथा घर आ गया. उसने देखा कि विपत्ति टल गयी और उसकी सारी संपत्ति तथा जन सुरक्षित हो गये. राजा प्रसन्नता से भर गया और सत्यव्रत के आचरण में निरत हो गया तथा अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर दिया.