देश में कोयले का संकट गहराया, बिहार,दिल्ली समेत कई राज्यों हो सकती है बिजली गुल
देश में कोयले की कमी के कारण बिजली का संकट गहराता जा रहा है। कोरोना महामारी के बाद अब अर्थव्यवस्था धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है और कल-कारखाने और कंपनियां फिर से खुलनी शुरू हो गई है।ऐसे में कोयले से बनने वाली बिजली की मांग बढ़ गया है। कोयला आधारित थर्मल पॉवर प्लांट में कोयले का स्टॉक खत्म होता जा रहा है। कोयले का संकट होने का अर्थ है कि इसका असर अब बिजली उत्पादन पर पड़ेगा, क्योंकि हमारे देश में बिजली का मुख्य स्रोत कोयला ही है। यानी भारत में 70% बिजली का उत्पादन कोयला से ही होता है।
जानकारी के मुताबिक, आपको बता दें देश में कोयला से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट्स में कहीं चार दिन का स्टॉक बचा है तो कहीं दो दिन का ही स्टॉक बचा है। अगर जल्द ही कोयला संकट से निजात नहीं पाया गया तो कोयले का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आयातक, उत्पादक और भारत संभावित ब्लैकआउट का सामना कर सकता है। कहा यह भी जा रहा है कि देश में इस वर्ष कोयला का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, लेकिन अत्यधिक बारिश ने कोयला खदानों से बिजली उत्पादन इकाइयों तक ईंधन की आवाजाही को ख़ासा प्रभावित किया है।जिससे बिहार समेत कई राज्यों में बिजली उत्पादन इसका गहरा असर पड़ा है।
बिहार : देशव्यापी कोयले संकट का असर बिहार की बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर देखने को मिल रहा है। खपत की तुलना में बिहार को केंद्रीय सेक्टर से लगभग आधी बिजली मिल रही है। खुले बाजार से बिहार अभी 1000 मेगावाट तक महंगी बिजली की खरीदारी कर रहा है, लेकिन यह नाकाफी साबित हो रहा है। इस कारण राज्य के शहरी क्षेत्र में बिजली आपूर्ति तो लगभग ठीक है लेकिन अर्धशहरी व ग्रामीण इलाके में सात से 10 घंटे तक की लोड र्शेंडग हो रही है। स्थिति सामान्य होने में एक-दो दिनों का अभी समय लग सकता है। किल्लत को देखते हुए बिहार ने केंद्र सरकार से कोटा बढ़ाने का भी अनुरोध किया है।
दिल्ली : राजधानी दिल्ली में भी बिजली का संकट गहराता जा रहा है। दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल ने बीते दिन शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “बिजली संकट” को लेकर एक पत्र लिखा। केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा, “मैं व्यक्तिगत रूप से स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा हूं। हम इससे बचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।” इस बीच टाटा पावर के एक प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने मुंद्रा में उत्पादन बंद कर दिया है क्योंकि मौजूदा पीपीए शर्तों के तहत आयातित कोयले की उच्च लागत आपूर्ति करना असंभव बना रही है।