आज है धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के पुण्यतिथि, जानें बिरसा मुंडा से जुड़ी कुछ खास बातें
आज 9 जून बिरसा मुंडा की 122वीं पुण्यतिथि है। झारखण्ड में आज बिरसा मुंडा के पुण्यतिथि पर केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा उनकी जन्मस्थली उलिहातू पहुंचेंगे और श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगेI इसके अलावा राज्यभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे I बिरसा मुंडा नौ जून 1900 को रांची के जेल मोड़ स्थित कारागार में शहीद हुए थे। बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1897 से 1900 के बीच मुंडा समाज के लोग अंग्रेजों से लोहा लेते रहे थे। बिरसा मुंडा और उनके साथियों ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे। अगस्त 1897 में बिरसा और उनके सिपाहियों ने तीर कमान से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोल दिया था। 1898 में मुंडा और अंग्रेज सेनाओं में युद्ध हुआ था। इसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई। इस युद्ध में अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी।
इसके बाद गुस्साएं अंग्रेजों ने आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू कर दीं। जनवरी 1900 में डोमबारी पहाड़ी पर एक और झड़प हुई थी। इसमें बहुत सी औरतें और बच्चे मारे गए थे। यहां बिरसा मुंडा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे। तभी अंग्रेजों ने धावा बोल दिया था। बाद में बिरसा के कुछ साथियों की गिरफ्तारी हुई। अंत में 3 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा को चक्रधरपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें रांची की जेल में रखा गया। बिरसा मुंडा ने नौ जून 1900 को शहादत प्राप्त की थी। आज भी झारखंड के अलावा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ पश्चिम बंगाल आसाम आदि इलाकों के आदिवासी बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजते हैं।
बिरसा मुंडा के जीवन परिचय –
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उस वक्त के रांची और वर्तमान के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था I इनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी मुंडा थाI इनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव में हुई, इसके बाद वे चाईबासा चले गए, जहां इन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की I इस दौरान वे अंग्रेज शासकों की तरफ से अपने समाज पर किए जा रहे जुल्म को लेकर चिंतत थेI आखिरकार उन्होंने अपने समाज की भलाई के लिए लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की ठानी और उनके नेतृत्वकर्ता बन गएI उस दौरान 1894 में छोटानागपुर में भयंकर अकाल और महामारी ने पांव पसाराI उस समय नौजवान बिरसा मुंडा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा कीI