भारत में मेन्युफेक्चरिंग ग्रोथ 12% से घट कर 0.6% हो गयी है जो ऐतिहासिक निम्नस्तर पर है, 4 मुख्य कारण

 भारत में मेन्युफेक्चरिंग ग्रोथ 12% से घट कर 0.6% हो गयी है जो ऐतिहासिक निम्नस्तर पर है, 4 मुख्य कारण

1) मोदी सरकार का झूठा डंका बजाने वाली अंधी विदेश नीति :

दक्षिण एशिया के देशो से ख़राब रिश्ते व् रीजनल ट्रेड एग्रीमेंट्स की महत्ता ख़त्म हो गयी है. आज आप सफ्टा (South Asian Free Trade Agrement) और ASIAN जैसे शब्द अख़बार या ख़बरों में कही सुनते हैं ? ये अर्थव्यवस्था से जुड़े ग्रुप थे जिनका उद्देश्य देशो की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना था. इनमे किसी देश का डंका भले न बजे लेकिन वहां के किसान व् उधोगपतियों, उपभोगताओं के लिए निर्णय लिए जाते थे.

नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार, ईरान और अफगानिस्तान एक जमाने में भारत के माल के बड़े खरीददार हुआ करते थे. आज चीन इन सभी में भारत से ज्यादा मजबूत हो चूका है. श्रीलंका में पोर्ट बनाना हो या पाकिस्तान के साथ (CPEC) चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का निर्माण करना हो , चीन हर पडोसी मुल्क में दूरगामी निवेश कर रहा है.

2) एकीकरण की अडानी-अम्बानी नीति :

आज भारत के लगभग सारे उधोगों का एकीकरण हो रहा है. मोदी सरकार को लगता है की एक उधोग को कुछ गिने चुने ( मोदी सरकार के मित्र) उधोगपति चलाएंगे तो बेहतर रहेगा. टेलीकॉम, मीडिया, सीमेंट, टीवी, एयरलाइन्स, माइनिंग, एयरपोर्ट, सी पोर्ट, इत्यादि लगभग सभी सेक्टर अडानी को और बाकि टाटा अम्बानी को दिए जा रहे हैं.

हर सेक्टर में पहले सैकड़ों प्लेयर होते थे. वो अपना धंधा चलाने के लिए अलग -2 देशों में जाके मुनाफा और धंधा के अवसर तलाशते थे. वो काम मार्जिन में भी काम कर लेते थे जबकि बड़े ग्रुप बिना 20-25% के प्रॉफिट मार्जिन के धंधा नहीं करते. लेकिन वो छोटे -2 उधोगपति मेक्रो (अर्थात देश के) लेवल पे इकठ्ठा होकर कई बिलियन का कारोबार GDP में जोड़ते थे.

एक ही कारोबारी के हाथ पूरा सेक्टर आने के बाद उस पर सर्विस अच्छी देने या रेट कम रखने का दबाव हट जाता है. खरीददार मज़बूरी में अधिक पैसा देता है और कम माल खरीदता है जिससे उसका प्रॉफिट मार्जिन बढ़ता है लेकिन कुल उत्पादन गिरता है. डोमेस्टिक कंजप्शन यानी घरेलू खपत कम होना उत्पाद क्षेत्र बढ़त दर (Menufacturing Groth) के गिरने का बड़ा कारन है. यही एकीकरण छोटे उधोग बंद कराता है.

3) कोरोना के बाद उधोगों को मदद ना देना :

मात्र 2020-21 में 12,930 छोटी मझोली कम्पनियाँ बंद हो गयी. इनमें यदि 50 कर्मचारी का भी औसत लें तो 6,46,500 परिवारों की आय छीन गयी वो अब खरीददारी कम करेंगे. सन 2020 में कोरोना के बाद व्यापारियों के समूह ने सरकार से गुहार लगाई की कोरोना के दौरान उन्हें टैक्स भरने में मात्र 3 महीने की मोहलत दे दी जाए.

मोदी सरकार के वित्त मंत्रालय ने मदद करने की बजाय सुप्रीम को आगे कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के बावजूद समय की मोहलत नहीं दी. अन्य देशों में उधोगों को टैक्स से पूरी छूट भी दी गयी और कुछ देशों में आर्थिक राहत भी प्रदान की गयी.

4) मोदी सरकार प्रायोजित सामाजिक अस्थिरता :

कोविड में 27 कंपनियों ने चीन से अपनी फैक्ट्री हटाई लेकिन ज्यादातर थाईलैंड फिलीपींस चली गयी मगर भारत नहीं आयी.

चीन और भारत पिछले दशक तक दुनियां की उत्पादन धुरी कहलाते थे. भारत अपने आप में एक बड़ा बाज़ार भी विकसित हो रहा था. सस्ती लेबर और मेटेरियल उपलब्धता के चलते बड़ी कम्पनियाँ यहाँ इन्वेस्ट करके अपनी फैक्ट्री व् काल सेंटर लगाते थे और भारत के साथ अन्य देशों में भी माल निर्यात करते थे.

लेकिन वर्तमान मोदी की सरकार में हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर जो अस्थिरता उत्पन्न की उससे आज भारत में उधोगपति अपनी फैक्ट्री नहीं लगाना चाहते. नेस्ले की मैगी में पतंजलि के कहने पे लेड (शीशा) के नाम पर बदनामी हो या क़तर एयरलाइन्स का बहिस्कार, या राजधानी दिल्ली में दंगा हो. इससे निवेश पर असुरक्षा का भाव उत्पन्न हुआ है. फोर्ड जैसी 12 बड़ी कंपनियों ने अपना धंधा भारत से समेट लिया है.

कुल मिला कर चुनाव जीतने के लिए प्रयोग किये जाने वाले हथकंडो को जब कोई सरकार देश चलाने में प्रयोग करने लगती है तो उस देश की अर्थव्यवस्था का हाल भी वही होता है जो चुनाव बाद चुनावी वादों का होता है. मोदी सरकर को अपनी राजनीती और अर्थ-विदेश निति को जितना जल्दी हो सके अलग कर लेना चाहिए. वर्ना बिकाऊ मीडिया झूठा डंका बजाती रहेगी और अर्थव्यवस्था का ढोल श्रीलंका की तरह फट जाएगा.

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