8 दिन में सिर्फ 20 घंटे साेए अफसर, जानिए कैसे मुमकिन हुआ ‘ऑपरेशन विकास’
कानपुर के बिकरू में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या विभाग पर बहुत बड़ा घात था। पुलिस हर कीमत पर विकास और उसके गुर्गों को पकड़ना चाहती थी। जिसके बाद आईजी ने रणनीतिकार की भूमिका निभाई। एसएसपी ने रणनीति तैयार की और एसपी वेस्ट ने फील्ड ऑपरेशन सम्भाला। तीनों के कार्डिनेशन का नतीजा यह रहा कि आठ दिनों में सिर्फ 20 घंटे की नींद लेने के बाद पांच गुर्गे और विकास दुबे मुठभेड़ में मार गिराए गए।
घटना के बाद सभी आरोपित अलग-अलग भागे और पुलिस की अलग टीमें बनाई गईं। इसमें सबसे बड़ा संकट था शहर के बाहर पुलिस पेट्रोलिंग ठीक से हो जाए। इसके लिए आईजी रेंज मोहित अग्रवाल ने कमान सम्भाली। उन्होंने रेंज में तो अलर्ट कर ही दिया। जोन स्तर पर अधिकारियों को क्या करना है और कैसे करना है इसपर भी उन्होंने एडीजी जोन के जरिए मैसेज पास करा दिए। इसके अलावा दूसरे राज्यों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी आईजी खुद ही लगातार सम्पर्क में बने रहे और पल पल की सूचना अपडेट ले रहे थे।
वहीं घटना होने के बाद आरोपियों को कैसे पकड़ा जाएगा। वह कहां भागे, लोकेशन कैसे ट्रेस होगी। जिस रास्ते पर आरोपित निकले वहां पर पुलिस टीम कैसे वर्क करेगी। कैसे सूचनाएं संकलित होंगी और अपराधियों तक कैसे पहुंचा जाएगा। इसे लेकर रणनीति बनाने की जिम्मेदारी एसएसपी दिनेश कुमार पी ने अपने ऊपर ले ली। उन्होंने ऑपरेशन को लेकर सारी रणनीति बनाने का काम किया और किस टीम से क्या काम लेना है यह जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने पास रखी।
रणनीति और रणनीतिकार जैसी और जो योजनाएं फील्ड के लिए तैयार कर रहे थे। उन्हें सफल बनाने के लिए फील्ड ऑपरेशन की जिम्मेदारी एसपी पश्चिमी डा. अनिल कुमार ने अपने ऊपर ले ली। विकास के गुर्गों के साथ हुई मुठभेड़ में उन्होंने खुद आगे बढ़कर कमान सम्भाली। घटना के अगले दिन सुबह भी जो एनकाउंटर हुए। उसमें उन्होंने खुद टीम को लीड कर कार्रवाई को अंजाम दिया।
2000 पुलिसवालों की 50 टीमें आठ दिन लगी रहीं तलाश में
आठ दिन से 50 टीमों में शामिल दो हजार पुलिसकर्मी पूरे प्रदेश में विकास दुबे को तलाशते रहे और वह पुलिस को चकमा देते हुए उज्जैन पहुंच गया। शातिर ने उज्जैन में कुछ राज उगले थे। अब वहां के अधिकारियों से इंट्रोगेशन रिपोर्ट मांगी जा रही है।
पूर्व में तो पुलिस की कुछ टीमों को उसे खोजने में लगाया गया था। इसके बावजूद शिवली से वह आराम से औरैया, फिर दिल्ली, फरीदाबाद होते हुए उज्जैन पहुंच गया। पुलिस और इंटेलीजेंस को इसकी भनक तक नहीं लगी। उज्जैन में उसने शातिराना तरीके से अपनी गिरफ्तारी दी। वहां पुलिस ने उससे पूछताछ की। जिसमें उसने कई राज उगले। पुलिस ने फार्मल तौर पर कोई लिखापढ़ी नहीं की और उसे कानपुर पुलिस और एसटीएफ को सौंप दिया। पुलिस उसे यहां लेकर आई और रास्ते में एनकाउंटर हो गया। इससे एक सवाल यह जरूर खड़ा हुआ पुलिस अगर अपने नेटवर्क का इस्तेमाल सही से कर लेती तो अपराधी इतनी दूर निकल ही नहीं पाता।
सर्विलांस के सहारे रह गई पुलिस
घटना के अगले दिन पुलिस ने सर्विलांस सिस्टम के जरिए प्रेम प्रकाश और अतुल दुबे का एनकाउंटर किया मगर विकास ने फोन का इस्तेमाल नहीं किया। इस कारण उसकी लोकेशन तक पहुंच पाना पुलिस के लिए मुश्किल हो गया था।
दो दिन तक औरैया में की कैम्पिंग मगर नहीं पकड़ पाए शातिर
4 और 5 जुलाई को शहर पुलिस के कुछ अफसरों ने औरैया में कैम्पिंग भी की। उन्हें कुछ सूचना तो थी कि विकास वहां हो सकता है मगर वह कहां है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वह वहीं से बस में बैठकर दिल्ली के लिए निकल गया।