बिहार के 12 विश्वविद्यालय का सत्र लेट, 3 साल का UG 6 साल में, वही PG 4 साल में
बिहार के 12 विश्वविद्यालयों का एकेडमिक सत्र लेट चल रहा है। लेटलतीफी का आलम यह है कि कहीं 35 साल से तो कहीं 30 साल से तो कहीं स्थापना काल से ही सत्र लेट चल रहे हैं। 17 विश्वविद्यालयों में 12 विश्वविद्यालय का हल ऐसा है I 2 वर्ष का कोर्स 3 वर्ष और 3 वर्ष का कोर्स 5 या 6 वर्ष में पूरा हो रहा है। यह किसी आपराधिक लापरवाही से कम नहीं है।
आपको बता दें राज्य के करीब 15 लाख छात्र सीधे तौर पर प्रभावित हैं। इन छात्रों का करियर, उनका भविष्य अँधेरे में फंसा हुआ है। नौकरी, रोजगार से लेकर देश के अच्छे उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा से छात्र वंचित हैं। ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार उच्च शिक्षा में कुल 23,55,469 नामांकन है।
सत्र लेट होने से –
1. रिजल्ट लेट होने से छात्रों का सेशन गैप देश के अच्छे संस्थानों में नामांकन नहीं हो पाता, छात्रों को पूरे साल इंतजार करना पड़ता है।
2. प्रतियोगी परीक्षाओं में भी परेशानी : छात्र रेलवे, बैंकिंग, यूपीएससी, बीपीएससी की परीक्षा के लिए समय पर फॉर्म नहीं भर पा रहे।
3. सत्र नियमित करने के लिए जल्दी परीक्षा शिक्षा की गुणवत्ता पर असर क्योंकि छात्र बिना कक्षाएं किए परीक्षा में बैठने को मजबूर होते हैं।
4. दूसरे राज्यों में पलायन करने की मजबूरी 2011 की जनगणना के अनुसार बाहर पढ़ने वालों में 14% छात्र बिहार के, यह बढ़ा ही है।