Balaghat News : बालाघाट के रामपायली में है श्रीराम के पदचिन्ह, 1907 के अंग्रेज गजेटियर में भी छपा था
बालाघाट जिले को भगवान श्रीराम के आगमन के लिए जाना जाता है। इतना ही नहीं भगवान श्रीराम के क्रोधित रुप की प्रतिमा और मां सीता को अभयदान देने रुपी कालेपत्थर की वनवासी रुपी प्रतिमा के विराजमान होने के साथ ही एक पत्थर पर पग के निशान है, जो भगवान के वनवास के दिनों में बालाघाट में भ्रमण को दर्शाती है। ऐसे में अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि पर होने वाला पांच अगस्त का अगस्त का भूमिपूजन बालाघाट वासियों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए घर-घर में दीपक जलाकर विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित कर इस उत्सव को मनाया जाएगा।
अंग्रेजी गजेटियर में दर्ज, श्रीराम के रामपायली पहुंचने का रिकार्ड
रामपायली बालाजी मंदिर के पुजारी रविशंकर दास वैष्णव ने बताया की वनवास के दौरान भगवान श्रीराम बालाघाट भी पहुंचे थे। इसका रिकार्ड पौराणिक होने के साथ ही अंग्रेजी गजेटियर में भी दर्ज है जिससे ये साबित होता है जो पौराणिक कहे जाने वाली बात को सच साबित करती है। उन्होंने बताया की जब अंग्रेजों का शासन था और बालाघाट महाराष्ट्र जिले में शामिल था। तब भंडारा जिले के कलेक्टर अंग्रेज शासक मिस्टर रसेल थे। इसी दौरान सन 1907 के गजेटियर में इस बात का उल्लेख किया गया है कि प्रभु श्रीराम के बालाजी मंदिर में जो कि चट्टान पर स्थित है उसमें भगवान श्रीराम के चरण अंकित थे जिसके चलते ही पूर्व में रामपायली को रामपदावली के नाम से भी जाना जाता था।
ऋषि शरभंग के दर्शन करने पहुंचे थे प्रभु
अंग्रेजी गजेटियर के अनुसार रामपायली में ऋषि शरभंग का आश्रम था। जिसमे प्रभु श्रीराम सीता माता के साथ उनके दर्शन करने पहुंचे थे। लेकिन दर्शन करने के पहले ही रामपायली से कुछ दूर स्थित गांव देवगांव में विराध नामक राक्षस सामने आ गया था जिसका वध कर उन्होंने ऋषि के दर्शन प्राप्त किए थे। हालांकि इस दौरान सीता माता राक्षस के सामने आने से भयभीत हो गई थी जिसके चलते भगवान ने विकराल रुप धारण कर सीताजी के सिर पर हाथ रख अभयदान दिया था। इसी रुप में रामपायली मंदिर में बालाजी व माता सीता की वनवासी प्रतिमा विराजमान हैं।
आस्था के प्रतीक श्रीराम मनाएंगे दीपावली
रामपायली और उसके आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच खुशी का माहौल है की अयोध्या में जन्मे प्रभु श्रीराम से उनका भी सीधा वास्ता है कारण वनवास के दौरान उनके पावन चरण बालाघाट के जमीन पर पड़े थे। इसके लिए पांच अगस्त को होने वाले भूमिपूजन के लिए यहां के लोगों में उत्साह भरा हुआ है। मंदिर को जहां पांच अगस्त को अंदर बाहर दीपों से रौशन किया जाएगा।
रामपायली मंदिर में वनवासी रूप की मूर्ति स्थापना की एक अलग गाथा
भगवान श्रीराम सीता के भ्रमण के साथ ही रामपायली मंदिर में वनवासी रुप की मूर्ति स्थापना की अलग गाथा है। यहां करीब 400 साल पहले एक व्यक्ति को स्वप्न दिखाई दिया था। जिसमें नदी के अंदर हजारों वर्ष पुरानी प्राचीन उक्त मूर्ति के होने की जानकारी मिली थी। जिसके बाद उक्त स्थान से मर्ति को चंदन नदी से निकालकर एक पेड़ के नीचे स्थापित किया गया था इस स्थान को राम डोह के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद नागपुर के राजा भोसले ने सन 1665 में मंदिर का जीर्णोंद्धार कर मूर्ति की स्थापना की थी और 18 वीं शताब्दी में ठाकुर शिवराज सिंह ने मंदिर का नव निर्माण कर इसे आधुनिक रुप दिया था।