राजगीर में रत्नागिरी हिल पर बना पहला और अधिक प्रसिद्ध विश्व शांति स्तूप ; राजगीर से प्रसिद्ध यादव

 राजगीर में रत्नागिरी हिल पर बना पहला और अधिक प्रसिद्ध विश्व शांति स्तूप ; राजगीर से प्रसिद्ध यादव

रमणीय, मनमोहक, प्रकृति सौंदर्य ,पहाड़ के ऊपर बना यह स्तूप यहां आने वाले को बरबस आकर्षित कर लेता है। मैं सुबह सुबह अपने परिवार के साथ राजगीर ब्रह्मकुंड में स्नान करने के बाद इस स्तूप की दर्शन के लिए पैदल ही दुर्गम पहाड़ी पर चढ गया।चारों तरफ घने जंगल ,गर्मी से बेहाल थक गया।करीब डेढ़ घंटे लगा जाने में लेकिन हार नहीं माना।सुबह के समय रोप वे बन्द रहता है। स्तूप को देखने पर लगा कि मैं बुद्ध को देख  हूँ और लगे भी क्यों नहीं? वहां कण  कण उनका साक्षी था । यहां न सिर्फ इनके पांव पड़े थे बल्कि यहां बैठकर न जाने कितनी बार ज्ञान का उपदेश दिया था। वहां की हर पत्थरों में बुद्ध दिखते थे।

विश्व शांति स्तूप 400 मीटर ऊंची रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। यह स्तूप संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है और स्तूप के चार कोनों में बुद्ध की चार आकर्षक मूर्तियाँ है जो इस स्तूप को और भी मनमोहक बनाती हैं। इस पहाड़ी की चोटी तक पहुँचने के लिए “रोपवे” से होकर आना पड़ता है जो इस सफर को और भी रोमांचक बनाता है। विश्व शान्ति स्तूप राजगीर बिहार मे है। सफेद रंग का एक विशाल स्तूप है। बुद्ध की प्रतिमाएँ चारों दिशाओं में स्तूप पर आरूढ़ हैं। इसमें एक छोटा जापानी बौद्ध मंदिर भी है, जिसके अंदर एक बड़ा पार्क है।

स्तूप के पास एक मंदिर है जहाँ विश्व शांति के लिए प्रार्थनाएँ की जाती हैं। 1993 में होने वाली नई पहल के परिणामवश स्तूप का वर्तमान रूप में सामने आया।विश्व शांति स्तूप रत्नागिरी की पहाड़ियों में विश्व शांति स्तूप  निर्माण 1969 में निप्पोंजन मायोहोजी द्वारा किया गया था, जिसे आमतौर पर जापान बुद्ध संघ के रूप में जाना जाता है।सफेद संगमरमर से बना यह स्तूप चार स्वर्ण बुद्ध की मूर्तियों से सुशोभित है, जो भगवान बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं को दर्शाती हैं।स्तूप को विश्व शांति के प्रतीक के रूप में बनाया गया था।

अजातशत्रु किले के अंदर स्थित बिंबिसार जेल ऊंची दीवारों और पत्थर के खंभों से घिरी हुई है।ऐसा माना जाता है कि अजातशत्रु के पिता बिंबिसार को राजा बनने के बाद खुद अजातशत्रु ने यहां कैद कर लिया था।वहीं, बिंबिसार अपने अंतिम दिनों के दौरान भी इसी जेल के छोटे से कमरे में रहे क्योंकि वह वहां से भगवान बुद्ध को देखने में सक्षम थे, जो उसी किले में रह रहे थे।
जब आप राजगीर जाएं तो आपको सप्तपर्णी गुफाओं की यात्रा अवश्य करनी चाहिए, जो सात पत्तियों वाली गुफा को संदर्भित करती हैं।किंवदंतियों के अनुसार, भगवान बुद्ध ने अपने अंतिम दिन इसी गुफा में बिताए थे। उन्होंने यहां ध्यान का अभ्यास भी किया।बुद्ध की मृत्यु के बाद प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन भी यहीं किया गया था। वहीं, यहां के परिषद का नेतृत्व महा कश्यप ने किया था और 500 से अधिक भिक्षु वहां मौजूद थे।

यह लगभग 80 शांति पैगोडाओं में से एक है जो कि नव-बौद्ध संगठन निप्पोनज़ान म्योहोजी द्वारा दुनिया भर में बनाए गए है। यह फ़ूजी निचिदात्सु का एक सपना था, जो गांधीजी से प्रेरित थे। जापान के परमाणु बमबारी को लेकर प्रतिक्रिया के रूप में, राजगीर में रत्नागिरी हिल पर बना पहला और अधिक प्रसिद्ध विश्व शांति स्तूप है।

यहाँ से थोड़ी ही दूरी पर गृद्धकूट नामक स्थान भी है, जो बुद्ध का एक प्रिय स्थान था। गृद्धकूट पर्वत जिसे पालि भाषा में गिज्झकूट कहा जाता था,  जहाँ महात्मा बुद्ध अक्सर आकर रहते थे और उपदेश दिया करते थे। इसका नाम संस्कृत भाषा में गिद्ध शब्द पर आधारित है क्योंकि यह पहाड़ एक बैठे हुए गिद्ध जैसी आकृति दिखाता है। अंत में इतना ही कह सकते हैं कि जो यहां आकर इस स्तूप को देखा वो धन्य हो गया।

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