हिन्दी के चलते फिरते विश्वविद्यालय थे पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी-डा अनिल सुलभ

 हिन्दी के चलते फिरते विश्वविद्यालय थे पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी-डा अनिल सुलभ

पटना/बिहार : खड़ी बोली हिन्दी की प्रथम पीढ़ी के महान कवियों और भाषाविदों में अग्रपांक्तेय विद्वान पं जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम सभापति थे। वे हिन्दी के एक चलते-फिरते विश्वविद्यालय थे। एक क्षण के लिए भी उनके पास आए लोग हिन्दी का कुछ नया सीख कर जाते थे।

यह बातें रविवार को, साहित्य सम्मेलन मेंआयोजित, जयंती-समारोह और कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि चतुर्वेदी जी अपनी पीढ़ी में अखंडित भारत के श्रेष्ठ साहित्यकारों में तो गिने ही जाते थे, अत्यंत लालित्यपूर्ण हास्य-व्यंग्य के लिए ‘हास्य-रसावतार’ के रूप में सर्वत्र समादृत होते थे। उनका मंच पर आते ही सभागार तालियों से गुंजायमान हो उठता था।

काव्य में छंद के प्रति विशेष आग्रह रखने वाले चतुर्वेदी जी गद्य साहित्य में भी रोचकता और लालित्य के पक्षधर और हास्य-व्यंग्य में फूहड़ता तथा व्यक्तिगत आक्षेप के प्रबल विरोधी थे। दूर दर्शन, बिहार के पूर्व कार्यक्रम-प्रमुख और कवि डा ओम् प्रकाश जमुआर, सम्मेलन के संरक्षक सदस्य अवध बिहारी सिंह, सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, कृष्ण रंजन सिंह, बाँके बिहारी साव तथा प्रवीर कुमार पंकज ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने जीवन में मुस्कान का महत्त्व रेखांकित करते हुए यह शेर पढ़ा कि “किसी की मुस्कुराहट में झलकता है जो अपनापन/ उसी से हौसला पाकर उदासी मुस्कुराती है”। कवयित्री इन्दु उपाध्याय का कहना था कि “पल पल में उनकी याद सताए तो क्या करूँ/ उनका ख़याल दिल से न जाए तो क्या करूँ” ।

वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, नरेंद्र कुमार तथा गोपाल कृष्ण मिश्र ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पांडेय ने किया। इस अवसर पर डा राम ईश्वर पण्डित, अवधेश चरण मेहता, नन्दन कुमार मीत, पुरुषोत्तम मिश्र, अरविंद कुमार, राम प्रसाद निराला, श्री बाबू आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।

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