क्या होता है स्वास्तिक 卐, शुभ कार्य से पहले क्यों बनाते हैं स्वास्तिक? जानिए

 क्या होता है स्वास्तिक 卐, शुभ कार्य से पहले क्यों बनाते हैं स्वास्तिक? जानिए

卐 स्वास्तिक का अर्थ 卐

स्वास्तिक में इस्तेमाल हुए सु का अर्थ है अच्छे और शुभ के रूप में लिया जाता है और अस्ति का अर्थ है होना यानी स्वास्तिक का अर्थ है शुभ होना व कल्याण होना।

स्वास्तिक की सबसे खास विशेषता है कि इसे घर की जिस भी दिशा में बनाया जाता है, वहां पर सकारात्मक ऊर्जा 100 गुना तक बढ़ जाती है. हिंदू धर्म को मानने वाले बहुत से लोग इसे अपने घर के दरवाजे घर के अंदर कई स्थानों पर बनाते हैं.

ऐसे होती है स्वास्तिक की संरचना

विधान के अनुसार, स्वास्तिक को 9 इंच बनाए जाने का विधान है। स्वास्तिक में सबसे पहले दो सीधी रेखाएं खींची जाती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं और इनके किनारे भी थोड़े मुड़े हुए होते हैं। जिस स्वास्तिक में ये रेखाएं दाईं ओर मुड़ती हैं उसे दक्षिणावर्त और जिसमें बाईं ओर मुड़ती हैं उसे वामावर्त स्वस्तिक कहा जाता है।

स्वास्तिक का आरंभिक आकार पूर्व से पश्चिम एक खड़ी रेखा और दूसरी इस रेखा के ऊपर से दक्षिण से उत्तर की ओर आड़ी खींची जाती है और फिर स्वास्तिक की चारों भुजाओं के सिरों पर पूर्व से एक-एक रेखा जोड़ी जाती है।

इसके बाद चारों रेखाओं के बीच में एक-एक बिंदु लगाया जाता है। स्वास्तिक के बायें हिस्से को भगवान गणेश का बीज मंत्र गं भी मानते हैं तो इसमें निहित चार बिंदियों को गौरी, पृथ्वी, कच्छप समेत अनेक देवताओं का वास माना जाता है।

उत्तर या ईशान दिशा में ही बनाए स्वास्तिक

घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक चिन्ह बनाने के लिए उचित दिशा भी जानना जरुरी है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, स्वास्तिक चिह्न हमेशा उत्तर या ईशान दिशा में ही बनाना चाहिए। मान्यता है कि इन दिशाओं में स्वास्तिक बनाने से भगवान और देवी-देवताओं की कृपा हमेशा परिवार पर बनी रहती है।

स्वास्तिक की चार रेखाओं का अर्थ

ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य माना गया है और उसकी चारों भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। इसके अलावा स्वास्तिक के मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में भी निरूपित किया जाता है।

अन्य ग्रंथो में स्वास्तिक को चार युग, चार आश्रम (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का प्रतीक भी माना गया है। यह मांगलिक विलक्षण चिन्ह अनादि काल से ही संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है।

भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक को में प्राचीन समय से ही मंगल प्रतीक माना गया है इसलिए कुंडली बनानी हो, वही खाता का पूजन करना हो या फिर कोई भी शुभ अनुष्ठान स्वास्तिक अवश्य बनाया जाता है।

स्वास्तिक करता है वास्तु दोष दूर

वास्तु में भी स्वास्तिक के चिन्ह का बहुत महत्व माना गया है। यदि किसी के मुख्य द्वार में किसी प्रकार का दोष हो तो उसे अपने द्वार पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। माना जाता है कि इससे वास्तु दोष का प्रभाव कम हो जाता है और आपके घर में सुख-समृद्धि एवं शुभता बनी रहती है।

ये सभी मान्यताओं पर आधारित है I AB BIHAR NEWS इसका पुष्टि नहीं करता है I

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