देश का एकमात्र मंदिर…जहां पत्नी संग विराजमान हैं भगवान शनिदेव, पांडव कालीन है ये मंदिर
वैसे तो शनिदेव अन्य मंदिरों में अकेले ही अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के कवर्धा में शनिदेव का एक ऐसा मंदिर है जहां वे अपनी पत्नी देवी स्वामिनी के साथ विराजमान हैं। इस पावन स्थान पर दोनों की पूजा अर्चना की जाती है।
इस स्थान पर पहुंचने का रास्ता थोड़ा कठिन है लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में भक्त जहां शनिदेव के दर्शन करने आते हैं। कवर्धा जिले के करियाआमा गांव में स्थित मंदिर में स्थापित यह मूर्ति पांडव कालीन मानी जाती है।
शनिदेव की प्रतिमा पर भक्तों द्वारा तेल चढ़ाने की परंपरा है। कहा जाता है कि इस स्थान पर स्थापित मूर्ति पर भी लगातार तेल चढ़ाने के कारण काफी धूल-मिट्टी की एक मोटी परत चढ़ गई थी। जब इस पावन प्रतिमा पर जमी परत को साफ किया गया तो शनिदेव के साथ ही उनकी पत्नी देवी स्वामिनी की भी मूर्ति प्राप्त हुई।
पांडवों ने की थी मूर्ति स्थापित !
स्थानीय लोगों का मानना है कि करियाआमा गांव में स्थित शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय इस स्थान के नजदीकी जंगल में भी व्यतीत किया था। इस अज्ञातवास के समय भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने शनिदेव की इस अदभुत मूर्ति को स्थापित किया था।
तेल चढ़ाए बिना आगे नहीं जाती थी बैलगाड़ी
प्राचीन समय में इस इलाके में बैगा जाति के आदिवासी लोग रहते थे। वह इस पावन स्थान को ओगन पाट कहते थे। उस दौरान इस मंदिर के चारों ओर दीवार नहीं थी। छत्तीसगढ़ी भाषा में ओगन का अर्थ तेल से भरे बांस के टुकड़े होता है।
प्राचीन समय में ओगन यानि बांस के टुकड़े का प्रयोग बैलगाड़ी के पहियों में तेल डालने के लिए होता था।
कहा जाता है कि बैलगाड़ी जब शनिदेव मंदिर के पास पहुंचती थी तो अपने आप ही रुक जाती थी और यह बैल गाड़ी तभी आगे बढ़ती थी जब लोग बांस के टुकड़े में भरा तेल शनिदेव की प्रतिमा को अर्पित करते थे।