भारत में जल संरक्ष्ण बहुत जरुरी, लोगों के जागरूक होने से बच सकती है पानी की बर्बादी
भारत के बहुत से इलाके रोज गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं I यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में ही पानी को किल्लत की बड़ी समस्या पैदा हो जाती है I इसी साल दिल्ली में पीने वाले पानी की भारी किल्लत देखने को मिली I कई बड़े शहरों के बारे में कहा जा रहा है कि आने वाले समय में वहां पानी खत्म हो सकता है I कुछ समय पहले हमने चेन्नई और कई शहरों को पानी के लिए मुश्किल में देखा है I तब वहां ट्रेनों से पानी भेजा गया I दिक्कत ये भी है कि हमारी कुछ आदते ऐसी हैं, जिससे हम रोज काफी पानी बर्बाद करते हैं और हमें पता भी नहीं चलता I
आपको सुनने में ये अजीब लग सकता है I लेकिन क्या आपको पता है कि हम रोज करीब 48 अरब लीटर पानी बर्बाद कर रहे हैं I जी हां. कभी ब्रश और दाढ़ी बनाते वक्त नल खुला छोड़कर, कभी नहाते वक्त, तो कभी पानी भरते वक्त I पानी की इतनी बर्बादी हो रही है कि रोज 48 अरब लीटर पानी यूं ही जाया हो रहा है I एक रिपोर्ट के अनुसार एक औसत भारतीय रोज 45 लीटर पानी बर्बाद कर देता है I वो जाने-अनजाने में पानी की बर्बादी करता है I हम रोज जितना पानी इस्तेमाल करते हैं, ये करीब उसका 30 फीसदी है I बाथरूम और टायलेट यूज में हम रोज 27 फीसदी पानी खर्च करते हैं I आमतौर पर ब्रश, सेविंग करते समय हम नल को खोलकर पानी को बहाते हैं तो वाशिंग मशीन और लीकेज में बड़े पैमाने पर पानी को वेस्ट कर देते हैं I
आपके जानकारी के लिए बता दें हमारे देश में दिल्ली फिलहाल ऐसा राज्य जरूर है, जो पानी की बर्बादी पर आर्थिक दंड लगाने का प्रावधान कर चुका है I दिल्ली में अगर आप पानी की बर्बादी कर रहे हैं तो अगर किसी ने उसका फोटो खींचकर दिल्ली जल बोर्ड को भेज दिया तो जल बोर्ड की टीम तुरंत उस जगह पहुंचेगी और पानी बर्बादी मिलने पर पेनाल्टी करेगी I पहली बार अगर आपने ऐसा किया तो 2000 रुपए की फाइन लगेगी लेकिन अगर इतने भी नहीं चेते तो हर 5000 रुपए का आर्थिक दंड भरना होगा I एनजीटी ने इस बारे में केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय और दिल्ली जल बोर्ड को लिखकर पूछा है कि वो बताएं कि इस दिशा में क्या कार्रवाई हो रही है I साफ पानी की बर्बादी एक बड़ी समस्या है और इसे ऐसे ही नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है I
जल है तो जीवन है, जीवन है तो ये पर्यावरण है,
पर्यावरण से ये धरती है, और इस धरती से हम सब है।
पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह परिणाम हुआ कि आज दुनिया के अधिकांश देश अपनी आबादी को पीने का स्वच्छ पानी तक मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। तमाम रिपोर्टे इस बात को चीख-चीखकर कह रही हैं कि यदि आज हम जल-संसाधन का उचित प्रबंधन नहीं कर पाते हैं तो भावी पीढ़ी जल के एक-एक बूंद के लिए तरस जाएगी। एक शोध के मुताबिक आज जिस रफ्तार से जंगल खत्म हो रहे हैं उससे तीन गुना अधिक रफ्तार से जल के स्रोत सूख रहे हैं। नीति आयोग के ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index)’ की माने तो भारत के लगभग 600 मिलियन से अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि साल 2030 तक भारत में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। इसके अलावा भारत इस समय पेयजल के साथ-साथ कृषि उपयोग हेतु जल संकट से भी गुजर रहा है और यह संकट वैश्विक स्तर पर साफ दिख रहा है।
‘सक्रिय भूमि जल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट 2022’ के मुताबिक भारत में कुल वार्षिक भू-जल पुनर्भरण 437.60 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है, जबकि वार्षिक भू-जल निकासी 239.16 BCM है। इन आँकड़ों से एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि भारत विश्व में भू-जल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है। हालाँकि, भारत में निष्कर्षित भू-जल का केवल 8 फीसद ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि, इसका 80 फीसद भाग सिंचाई में और शेष 12 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है। ऐसे में देश में भू-जल की मात्रा में भी दिनों-दिन कमी आ रही है।
लिहाजा, दुनियाभर के देशों को इस जल संकट को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने पर विचार करना चाहिए। इस संकट के निवारण हेतु हमें तीन स्तरों पर विचार करना होगा। पहला यह कि अब तक हम जल का उपयोग किस तरह से करते आ रहे थे? दूसरा यह कि भविष्य में इसका उपयोग कैसे करना है? और तीसरा एवं सबसे आखिरी यह कि जल संरक्षण हेतु क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
अब तक की पूरी स्थिति पर अगर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि अभी तक हम पानी का उपयोग अनुशासित ढंग से नहीं करते आ रहें है। जरूरत से ज्यादा पानी का नुकसान करना तो जैसे हमारी आदत बन गई हो। ऐसे में हमारी भावी पीढ़ी के लिए भी जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो, इसके लिए हमें कई कदम उठाने होंगे; जैसे कि-
- घरेलू स्तर पर जल का उचित व संयमित उपयोग एवं उद्योगों में पानी के चक्रीय उपयोग जल संरक्षण में सहायक हो सकते हैं
- इस्तेमाल किये हुए पानी का फिर से शौचालयों अथवा बगीचों में फिर से इस्तेमाल और रिसाइकिलिंग करके
- जल का सदुपयोग कैसे करना है, इस दिशा में जन-जागरूकता बढ़ायी जाए
- वर्षा-जल का संग्रहण करके हम पानी को बचा सकते हैं
- विभिन्न जलाशयों का निर्माण करके उनमें जल संग्रह करना जल संसाधन का सबसे पुराना उपाय है, इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है
- भूमिगत जल संरक्षण के लिए भूमिगत जल का कृत्रिम रूप से पुनर्भरण किया जा सकता है
- टपकन टैंक/ड्रिप/स्प्रिंकल सिंचाई के उपयोग से सिंचाई जल के संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है
- Catchment Area Protection (CAP) के माध्यम से जलग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण करके जल के साथ-साथ मृदा का भी संरक्षण किया जा सकता है। यह विधि सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में प्रयोग में लायी जाती है
- फसल उगाने के तरीकों का प्रबंधन करके; जैसे कि कम जल क्षेत्रों में ऐसे पौधों का चयन करके जिनकी पैदावार के लिए कम पानी की जरूरत हो
- नहरों की तली व नालियों को पक्का करके नहरों-नालियों से बहने वाले अतिरिक्त जल को बचाया जा सकता है
अगर हम बात मौजूदा समय में भारत की जल जरूरत की बात करें तो इसके लगभग 1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष होने का अनुमान है। इस उच्च आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारत सरकार भी विभिन्न साधनों और उपायों के जरिए जल निकायों की स्थिति और बेहतर उपचार प्रणालियों में सुधार करने की कोशिश कर रही है I