Navratri : पटना में पट खुलते ही इन 5 शक्तिपीठ मंदिरों में उमड़ी भक्तों की भीड़, जानें इनकी महिमा
पटना में हिंदुओं के लिए कई पूजनीय स्थल हैं । छोटी पटन देवी, बड़ी पटन देवी, शीतला मंदिर, दरभंगा हाउस की काली मंदिर, अखंडवासिनी मंदिर आदि यहां के लोगों के लिए न केवल मंदिर हैं, बल्कि आस्था और विश्वास के केंद्र भी हैं । यहां नवरात्र के मौके पर सप्तमी से लेकर नवमी तक अहले सुबह से देर शाम तक मां के भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगी रहती हैं ।
पटन देवी नगर की अधिष्ठात्री और परिरक्षिका शक्ति है । साभ्यंग स्तोत्र पाठ में जो स्थान कवच का है, वही स्थान पटना के तीर्थों में बड़ी पटन देवी का है । देश के 51 शक्तिपीठों में पटन देवी का अपना महत्वपूर्ण स्थान है । पुराण और आगम के अनुसार सती के सभी अंग 51 स्थानों पर गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाये । पटना में दो पटनदेवी हैं. एक बड़ी पटनदेवी और दूसरी छोटी पटनदेवी ।
1.बड़ी पटन देवी
पश्चिम दरवाजा के पास गुलजारबाग स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर उत्तर महाराजगंज में स्थित है. बड़ी पटनदेवी को पुराणों में सर्वानंदकारी देवी कहा गया है । तंत्रचूडामणि तंत्र के अनुसार मगध में सती की दक्षिण जांघ गिरी थी । बड़ी पटनदेवी में सती की जांघ गिरी थी । यहां तांत्रिक पद्धति से पूजा होती है । महाअष्टमी की रात में महानिशा पूजा व संधि पूजा महानवमी को सिद्धिदात्री पूजन, कन्या पूजन व दशमी को अपराजित पूजन, शस्त्र पूजन और शांति पूजन का आयोजन होता है ।
2.छोटी पटन देवी मंदिर
यह मंदिर हरिमंदिर साहिब की गली में है । यहां देवी सती का पट यानी वस्त्र यहां के कुएं में गिरा था । कुएं को ढक कर उस पर एक वेदी बना दी गयी है, जिसकी पूजा की जाती है, जो मंदिर के पश्चिम वाले बरामदे में है । इस मंदिर में भी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित हैं । 16वीं शताब्दी में बादशाह अकबर के सेनापति राजा मानसिंह ने यहां एक मंदिर की स्थापना करायी थी । इस देवी की पूजा-अर्चना वैष्णव रीति की जाती है ।
3.शीतला मंदिर
अगमकुआं में मां शीतला का मंदिर स्थित है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त मां के प्रति अपनी श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं । इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मौर्यकालीन मंदिर है । नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी और नौवीं के अवसर पर श्रद्धालु नर-नारियों का सैलाब उमड़ पड़ता है । मंदिर में मां शीतला की प्रतिमा के अलावा सप्त मातृ शक्ति के प्रतीक स्वरूप सात पिंड और भैरव स्थान भी है । शीतला मां को दही और गंगाजल से स्नान कराया जाता है । घड़े के पानी से इसका जलाभिषेक होता है ।
4.दरभंगा हाउस काली मंदिर
गंगा तट पर स्थित दरभंगा हाउस परिसर में स्थित काली मंदिर के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा और अटूट विश्वास है । यहां स्थापित काली, जो दक्षिण काली हैं, काफी जागृत है । यह मंदिर दो सौ साल से अधिक पुराना है । इसकी स्थापना दरभंगा के महाराजाधिराज रामेश्वर सिंह ने की थी । भगवान शंकर के सीने पर चढ़ी मां काली की रौद्र रूप वाली प्रतिमा की दायीं ओर बटुक भैरव और बायीं ओर गणेश जी की प्रतिमा है । नीचे एक कलश है, जो हर वर्ष अश्विन के प्रथम दिन बदला जाता है ।
5.अखंडवासिनी मंदिर
यह मंदिर गोलघर के पास (पश्चिम) स्थित है । यह मंदिर 120 साल पुराना है । यहां पर मां काली की पूजा होती है । मंदिर में 118 साल से अखंड दीपक लगातार जल रहा है । अखंड दीपक जलने के कारण इसे अखंडवासिनी मंदिर कहा जाता है । मान्यता है कि मंदिर में खड़ी हल्दी और 9 उड़हुल 21 फूल और सिंदूर चढ़ाने से मां भक्तों की मन्नत पूरी करती हैं । जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है, वे मंदिर में आकर दीपक जलाते हैं । नवरात्र में घी और तेल (तीसी) के दीये जलाने की परंपरा है ।