“भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव का अद्भुत मिश्रण”
“बबुआ… एक विरासत“
यह कोई काल्पनिक दुनिया की बात नहीं है, यह किसी साहित्यिक विधा की बारीकियों पर बहस नहीं है। यह मूलतः एक दिवंगत आत्मा के प्रति चंद लोगों की भावनाएं हैं, कुछ सच्ची घटनाओं का संक्षिप्त विवरण है, कुछ नई-पुरानी एवं दुर्लभ तस्वीरें हैं….
“बबुआ… एक विरासत” एक संस्मरणात्मक श्रद्धांजलि संग्रह है जो बिहार के गोपालगंज जिले के हथुआ अनुमंडल स्थित भरतपुरा गाँव के निवासी स्व. मधुसूदन प्रसाद को उनके परिजनों एवं शुभचिंतकों द्वारा दी गई है। इसका संकलन स्व. प्रसाद के पुत्र समीर परिमल एवं पुत्रियों डॉ. नीलम श्रीवास्तव तथा पूनम श्रीवास्तव द्वारा किया गया है। ख़ास बात यह है कि यह संग्रह बिक्री के लिए नहीं है बल्कि इच्छुक लोगों को निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है।
यह पुस्तक अपने आप में एक अनूठा प्रयोग है। भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति के साथ ही इस पुस्तक का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी अद्भुत है। पुस्तक प्रथम पृष्ठ से ही एक मनोवैज्ञानिक आवरण तैयार करती है जिसके अंदर पाठक प्रवेश कर डूबता जाता है। वैचारिक उद्वेग में पाठक “बबुआ” में अपने बचपन, अपने गांव, अपनी संस्कृति, अपनी विरासत आदि को पाने का प्रयास करता है और सफल भी होता है। यह एक सहज, सुलभ, साधारण से दिखने वाले असाधारण मानव के व्यक्तित्व के कई परतों को क्रमशः खोलती है। यह पुस्तक हमें इस विमर्श तक लेकर जाती है कि मधुसूदन बाबू होने का क्या अर्थ है? कैसे बनते हैं मधुसूदन बाबू जैसे व्यक्तित्व? कैसे निर्माण होता है? कच्चा माल कहां से आता है?
यह पुस्तक मधुसूदन बाबू के साथ साथ उनके परिवार और खानदान का परिचय कराती है। गोपालगंज जिले का वह खानदान जिसने न सिर्फ बिहार बल्कि देश को कई अमूल्य रत्न प्रदान किए हैं। इस पुस्तक में 6 पीढ़ी की वंशावली, स्व. मधुसूदन प्रसाद का जीवन वृत्त, उनकी धर्मपत्नी तारा देवी का साक्षात्कार, 64 लोगों की संस्मरणात्मक श्रद्धांजलि, नई – पुरानी तस्वीरें तथा कुछ कविताएं/गीत/ग़ज़ल आदि संकलित हैं। 110 पृष्ठों की यह खूबसूरत पुस्तक पूर्णतः रंगीन एवं साजिल्द संस्करण में आर्ट पेपर पर प्रकाशित है। यह निश्चय ही एक संग्रहणीय संकलन है। इसे प्राप्त करने के लिए समीर परिमल से संपर्क किया जा सकता है।
समीक्षक – श्वेता मिनी, पटना