150 वर्ष पूर्व हुई थी “ॐ जय जगदीश हरे” नामक आरती की रचना, जानें कौन थे वो महान रचयिता?

 150 वर्ष पूर्व हुई थी “ॐ जय जगदीश हरे” नामक आरती की रचना, जानें कौन थे वो महान रचयिता?

घर-घर में हर धार्मिक अनुष्ठान के बाद आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ का सम्मिलित गान जरूर होता है। 150 सालों से यह आरती पूजा-अनुष्ठान का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। इसे बनाया था पंडित श्रद्धाराम फुल्लौरी ने । बहुत कम लोगों को पता होगा कि ‘ओम जय जगदीश हरे…’ आरती की रचना आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व सन् 1870 ईस्वी में हुई और इसके गायक व रचयिता थे विलक्षण प्रतिभाशाली विद्वान पंडित श्रद्धाराम (शर्मा) फिल्लौरी। पंडित श्रद्धारामजी का जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौरी गांव में हुआ और निधन 24 जून 1881 को हुआ। पंडित श्रद्धाराम प्रसिद्ध साहित्यकार तो थे ही, साथ ही सनातन धर्म-प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। आइये पढ़ते हैं यह पवित्र आरती:-

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट

क्षण में दूर करे।। ओम जय…

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।

स्वामी दुख बिनसे मन का

सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।।  ओम जय…

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आश करूं किसकी।।  ओम जय…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।

स्वामी तुम अंतरयामी

परम ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।।  ओम जय…

तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता।

स्वामी तुम पालन करता

दीन दयालु कृपालु, कृपा करो भरता।। ओम जय…

तुम हो एक अगोचर सबके प्राण पति।

स्वामी सबके प्राण पति

किस विधि मिलूं दयामी, तुमको मैं कुमति।। ओम जय…

दीन बंधु दुख हरता, तुम रक्षक मेरे।

स्वामी तुम रक्षक मेरे

करुणा हस्त बढ़ाओ, शरण पड़ूं मैं तेरे।।  ओम जय…

विषय विकार मिटावो पाप हरो देवा।

स्वामी पाप हरो देवा

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा।। ओम जय…

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