आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आज राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर, काम करने की स्थिति और कम वेतन का कर रही विरोध

 आशा और आंगनवाड़ी  कार्यकर्ता आज राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर, काम करने की स्थिति और कम वेतन का कर रही विरोध

Breaking News : योजना कार्यकर्ता महासंघ के संयुक्त मंच ने कहा है कि लाखों मान्यता प्राप्त आशा यानी सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आज राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर हैं। कोविड ड्यूटी पर रहते हुए जोखिम भत्ता और बीमा कवर की अपनी मांग और नियुक्तियों को नियमित करने की मांग को लेकर यह हड़ताल कर रही है। कई राज्यों में आशा कार्यकर्ता कोरोनोवायरस महामारी शुरू होने के बाद से ही अपनी काम करने की स्थिति और कम वेतन का विरोध कर रही हैं।

बता दें कि अपने सामान्य काम और कोविड ड्यूटी के अलावा, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शहरी क्षेत्रों से कटे हुए, हाशिए के लोगों के दरवाजे तक कोविड -19 टीके लाकर भारत के टीकाकरण अभियान को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभा रही हैं।आशा कार्यकर्ताओं के एक मंच- ‘महाराष्ट्र राज्य आशा गतप्रवर्तक कर्मचारी कृति समिति’ की एमए पाटिल ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, “यह आशा कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे संक्रमित रोगियों के करीबी संपर्कों को ट्रैक पता करें। साथ ही हर दिन उन्हें कुपोषित बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य संबंधी अपडेट भी रखने होते हैं। इसके बावजूद, उन्हें अपना कोविड -19 प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है।”

गांवों में किसी को भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है तो वह सबसे पहले आशा वर्कर का ही रूख करता है। आशा कार्यकर्ताओं ने संस्थागत प्रसव में सहायता करके मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में सहायता की है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बच्चों के लिए सरकार के पोषण कार्यक्रम को चलाने में अहम भूमिका निभाती हैं।ये जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की सर्व-महिला सेना है, जो कोविड -19, कुपोषण और विभिन्न टीकाकरण के खिलाफ भारत की लड़ाई में सबसे आगे रही है, न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन लाभ अर्जित करने के अपने अधिकार के लिए अब ये राष्ट्रव्यापी विरोध कर रही हैं।

आपको बता दें कि वे घर-घर सर्वेक्षण, कॉन्ट्रैक्ट-ट्रैकिंग, जागरूकता अभियान चलाने और शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों में लौटने वाले प्रवासियों को खुद को सुनिश्चित करने से लेकर कई गतिविधियों को अंजाम दे रही हैं। क्योंकि उन्हें स्वयंसेवक माना जाता है और ये पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं हैं, इसलिए उन्हें मानदेय मिलता है न कि निश्चित वेतन। आशा कार्यकर्ताओं को कोविड ड्यूटी में शामिल होने के लिए अतिरिक्त 1,000 रुपये प्रति माह देने का वादा भी किया गया था, लेकिन अधिकांश राज्यों ने अभी तक इस राशि को क्रेडिट नहीं किया गया है।

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