Budget 2021: वित्तमंत्री सीतारमण को बजट में करने होंगे ये 5 संशोधन

 Budget 2021: वित्तमंत्री सीतारमण को बजट में करने होंगे ये 5 संशोधन

भारतीय जीडीपी में ऐतिहासिक संकुचन के साथ आर्थिक रूप से सुदृढ़ पड़ोसी से सीमा पर तनाव के चलते वित्तमंत्री से एक ऐसा बजट पेश करने की उम्मीद की जा रही है जो अब तक कभी पेश नहीं हुआ। अपने वादे पर खरा उतरने के लिए वित्तमंत्री को विशेष रूप से पांच चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

1. घरेलू मांग को पटरी पर लाना

भारत की खपत की कहानी लॉकडाउन से पहले ही चमक खो चुकी थी। लॉकडाउन ने उसमें जबरदस्त चोट पहुंचाई। 2017-18 के नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों को मुताबिक 2011-12 से ही ग्रामीण भारत में खपत व्यय गिरने लगा था और 2017-18 में यह केवल शहरी भारत में बढ़ा। आने वाले महीनों में मोबिलिटी और इम्यूनिटी बढ़ने से खपत को लेकर होने वाला खर्च बढ़ सकता है। जबरन हो रही बचत के फिर से बाहर निकलने पर तेजी की संभावना है। कोरोना से उपभोक्ताओं के विश्वास काफी डिगा है। नौकरियां जाने से भी खपत पर असर पड़ा है।

2. बेहतर नौकरियां मुहैया करवाना

खपत बढ़ाने के लिए वित्तमंत्री को बेहतर वेतन वाली नौकरियों की व्यवस्था करनी होगी। पिछले कुछ सालों में वेतनभोगियों की संख्या धीमी रफ्तार से ही सही पर काफी बढ़ी है। महामारी ने वेतनभोगियों की संख्या काफी घटा दी है। वित्त वर्ष 2020 में एक सर्वे के मुताबिक वेतनभोगियों का प्रतिशत 21 फीसदी था जो सितंबर 2020 में घटकर 17 फीसदी हो गया। दिसंबर में यह 18 फीसदी तक ही पहुंच पाया है। खपत बढ़ाने के लिए पक्की नौकरियों की जरूरत होगी क्योंकि नई अर्थव्यवस्था यानी गिग इकोनॉमी में अस्थाई नौकरियों की बहुतायत है जिनमें खपत बढ़ाने वाली कमाई घटी है और असमानता बढ़ी है।

3. जुझारूपन वापस लौटाना

नौकरियां बढ़ाने के लिए उद्योगों को नया निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। कई साल से निवेश का पहिया सुस्त चाल दिखा रहा है और पिछले साल तो पूरी तरह से थम गया। भारतीय जीडीपी में नए निवेश का हिस्सा इस साल 24 फीसदी से भी कम रहने का अनुमान है जो दो दशक का सबसे निचला स्तर होगा। वर्ष 2007-08 में यह 36 फीसदी तक चला गया था। उसके बाद से निरंतर गिरावट दर्ज हो रही है। 2008 के संकट के बाद से नए निवेश में कंपनियां और कर्ज देने वाले पैसा लगाने से कतरा रहे हैं। पहले क्लीयरेंस की वजह से रुकावट आती थी अब पैसा देने वाले कतरा रहे हैं। वित्तमंत्री को इस पर विशेष ध्यान देना होगा।

4. कर्ज की उपलब्धता का संकट खत्म करना होगा

हाल के वर्षों में बैंकों ने बैड लोन यानी एनपीए को कम करने में काफी सफलता हासिल की है लेकिन महामारी ने इन पर पानी फेर दिया है। आरबीआई द्वारा हाल में जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अंतर्गत प्रस्तुत स्ट्रेस टेस्ट में कहा गया है कि सितंबर 2021 में बैंकों का बैड लोन 14 फीसदी तक बढ़ सकता है जो पिछले साल की तुलना में दो गुना होगा। जीडीपी की गिरती सेहत में इस तरह की स्थिति बैंकों पर अतिरिक्त कोष जुटाने का संकट पैदा करेगी। सरकारी बैंकों इसके लिए अपनी हिस्सेदारी बेचकर पूंजी जुटानी पड़ सकती है। ऐसे में नए निवेश के लिए कर्ज देने में उनका हाथ रुक सकता है।

5. महंगाई बढ़ाए बिना खर्च बढ़ाना

अर्थव्यवस्था के तीन खास इंजन-खपत, निवेश और निर्यात काफी खराब स्थिति से गुजर रहे हैं। सारा दारोमदार सिर्फ सरकार के कंधे पर है। इनको चलाने के लिए सरकार को अतिरिक्त उधारी लेनी होगी जो सार्वजनिक कर्ज और जीडीपी के अनुपात परे असर डालेगी। रेटिंग एजेंसियों का अनुमान है कि यह अनुपात वित्त वर्ष 21 में तेजी से बढ़ेगा। अगर बढ़ा व्यय पूंजी विस्तार को ध्यान में रखकर होता है तो उससे ग्रोथ को बढ़ाने में मदद मिलेगी। लेकिन यह रेवेन्यू एक्पेंडिचर को ध्यान में रखकर किया जाता है तो इसका असर उल्टा होगा।

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