बिहार में बिजली के रंगीन बल्बों और लारियों बढ़ा क्रेज, मिट्टी के दीये की लौ हुई कम
दिवाली यानी कि दीपों का त्योहार कहे जाने वाला पर्व है। लेकिन अब लोग दिवाली में मिट्टी के दीये जलाने की बजाय बिजली के रंगीन बल्बों और लारियों से घर को सजाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि अब सतरंगी लरियों के क्रेज बढ़ता जा रहा है और मिट्टी के दीये का लौ कम होता जा रहा है।
आपको बता दें पहले दिवाली के मौके पर कुम्हारों के मोहल्लों में जितना उल्लास देखने को मिलता था। अब वह कुछ साल से नहीं दिखता है।सतरंगी लरियों के बढ़ते क्रेज के कारण दीये की लौ कम होती जा रही है। दीये की मांग घटने से कुम्हारों का पुश्तैनी धंधे पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। ऐसे अब यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि अब दिवाली में लोग सिर्फ पूजा तक ही मिट्टी के दीये का उपयोग करते हैं। जो कि पहले ऐसा नहीं था।
वही, कुम्हारों का कहना है कि मिट्टी के दीये की मांग 50% तक कम हो गयी। शहर ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी दीये की मांग पहले की तरह नहीं है। कुम्हार परिवार दिवाली के साथ छठ की भी तैयारी में जुटे हैं। दीपोत्सव के लिए दीये और खिलौने बना रहे हैं तो छठ के चूल्हा, ढकनी और कपनी। उनका कहना है कि एक पर्व के भरोसे रहेंगे तो उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। एक कुम्हार हर दिन करीब 500 से 600 दीये बना लेते हैं।