यहां होती है महादेव के खंडित त्रिशूल की पूजा, मंदिर से जुड़े कई और रहस्यों के बारे में जानें

 यहां होती है महादेव के खंडित त्रिशूल की पूजा, मंदिर से जुड़े कई और रहस्यों के बारे में जानें
Patnitop Shudh Mahadev Temple : Patnitop Shudh Mahadev Temple Fragmented  Trishul And Devi Parvati Birthplace Mystery | इस मंदिर में भगवान शिव का  खंडित त्रिशूल, यहीं हुआ था देवी पार्वती का जन्म -

शास्त्रों की मानें तो देवी-देवताओं की खंडित मूर्ति (Broken Idol) की पूजा करना मना है. खंडित मूर्ति को बहते जल में विसर्जित कर दिया जाता है या फिर किसी पेड़ के नीचे रख दिया जाता है. लेकिन इस मामले में खंडित शिवलिंग (Broken Shivlinga) एक अपवाद है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि खंडित होने के बाद भी शिवलिंग की पवित्रता बनी रहती है इसलिए उसकी पूजा की जा सकती है. कुछ ऐसा ही वाक्या महादेव के एक मंदिर में देखने को मिलता है जहां उनके खंडित त्रिशूल की पूजा की जाती है.

यहां होता है खंडित त्रिशूल का जलाभिषेक, राक्षस के नाम पर पड़ा था मंदिर का  नाम - sudh mahadev temple in patnitop

पटनीटॉप में है यह अनोखा शिव मंदिर

यह अनोखा शिव मंदिर जम्मू से 120 किलोमीटर दूर पटनीटॉप (Patnitop) के पास स्थित है जिसका नाम सुध महादेव मंदिर है. यह देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक है (2800 साल पुराना मंदिर). सुध महादेव मंदिर (Sudh Mahadev) भगवान शिव के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक है. इस मंदिर में एक विशाल त्रिशूल के 3 टुकड़े जमीन में गड़े हुए हैं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये स्वंय भगवान शिव के त्रिशूल (Lord Shiva Temple) के टुकड़े हैं. त्रिशूल के अलावा इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग, नंदी और शिव परिवार के सभी सदस्यों की मूर्तियां हैं.

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

सुध महादेव मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर है मानतलाई जिसे माता पार्वती (Goddess Parvati) की जन्मभूमि माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पार्वती जी मंदिर में शिव जी की पूजा करने आयीं और उनके पीछे पीछे सुधान्त नाम का राक्षस (Sudhant Demon) भी आ गया. वह भी शिव भक्त था और पूजा करने आया था. माता पार्वती ने जब अपनी आंखें खोलीं और राक्षस को देखा तो वह चीख पड़ीं. भगवान शिव को लगा पार्वती जी मुसीबत में हैं इसलिए उन्होंने अपना त्रिशूल उस राक्षस की ओर फेंक दिया और सुधान्त की मृत्यु हो गई. लेकिन कुछ ही क्षण बाद शिव जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने सुधान्त को जीवनदान देने की बात कही. लेकिन सुधान्त ने कहा कि वह अपने इष्ट देव के हाथों मृत्यु पाकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है. तब महादेव ने सुधान्त से कहा कि उसके नाम पर ही मंदिर का नाम सुध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाएगा.

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