मैं भी छू सकती हूँ आकाश, मौके की मुझे है तलाश
नारी उस वक़्त वृक्ष की टहनी है जो विशाल परिस्तिथियों में भी डटे रहते हुए मुसाफिर को छाया प्रदान करती है| नारी को कोमलता एवं सहनशीलता को कई बार पुरुष ने उसकी निर्बलता मान लिया और उसे अबला कहा| किन्तु आशचार्य की बात तो यह है कि वो अबला नहीं वो तो सबला है|पुरुष शायद ये भूल जाते हैं कि उसकी इसी कोमलता एवं सहनशीलता में ही मानव जीवन का अस्तित्व संभव है|क्या माँ के सिवाय संसार में कोई ऐसी हंसती है, जो प्रेम से शिशु का लालन पालन कर सके जैसे की माँ करती है| इसमें कोई संदेह नहीं है कि नारी ही वो शक्ति है जो समाज के पोषण और कल्याण से लेकर सब कुछ समर्पण कर देती है|
“स्त्री के उन्नति पर ही, राष्ट्र की उन्नति निर्भर है”
स्वामी विवेकानंद के अनुसार “नारी उतना ही साहसी है जितना की पुरुष”|नारी शक्ति का क्या करूँ वर्णन , इतना साहस इतनी सहनशीलता ‘रानी लक्ष्मी बाई’ की वीरता के बारे में कौन नहीं जानता| जिसने सिर्फ अपने साहस के बल पर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए|
आज के दौर में स्त्री किसी भी रूप में पुरुषों से कम नहीं है| वो अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुए, वो हर चुनौती का डट के सामना कर रही|
“ कोई भी देश यश के शिखर पर तब तक नहीं पहुँच सकता ,
जबतक उसकी महिलाएं कंधे से कंधा मिला कर न चलें |”
संवादाता
सुरैया तबस्सुम