महाशिवरात्रि पर अगर यह काम करेंगे, तो भगवन शिव होंगे प्रसन्न
फाल्गुन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। शास्त्रीय वचनानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि व्रत होता है। ऐसे ही मान्यता है कि फाल्गुन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ एवं सृष्टि के अंत में भगवान शिव इसी तिथि को डमरु बजा कर सृष्टि का निर्माण करते हैं और तांडव कर सृष्टि का संहार करते हैं।
भगवान शिव का शाब्दिक अर्थ है कल्याण करने वाला। भगवान शिव को आशुतोष भी कहते हैं इसका शाब्दिक अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले। भगवान शिव सृष्टि के संहारक के रूप में ऐसे देवता हैं जो मात्र नाम स्मरण से प्रसन्न हो जाते हैं।
इस वर्ष महाशिवरात्रि 11 मार्च को है। यद्यपि इस दिन फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी है किंतु त्रयोदशी दोपहर 2:40 बजे तक है। निशीथव्यापिनी चतुर्दशी होने कारण चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन 11 फरवरी को सर्वमान्य होगा।
शिवरात्रि व्रत करते समय हमें कुछ बातों का ध्यान देना चाहिए। प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर घर में अथवा मंदिर जाकर भगवान शिव के दर्शन करें। ओम् नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवलिंग पर जल एवं दूध से अभिषेक अवश्य करें। पूरे दिन सत्याचरण, संयमित व्यवहार और शुभ आचरण करें।
रात्रि को सामूहिक रूप से अथवा अपने घरों में भगवान शिव के गुणगान करें। रुद्राभिषेक, महा रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, भजन एवं गीत आदि के साथ रात्रि जागरण का विधान है। अगले दिन व्रत का परायण किया जाता है। भगवान शिव का नाम आशुतोष भी है। आशुतोष का अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान शिव। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर गंगाजल ,जल, दुग्ध, दही, गन्ने का रस एवं शहद आदि का अभिषेक किया जाता है।
बेलपत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं। तीन पत्ते वाले बेलपत्र को शिवलिंग पर ओम् नमः शिवाय के जाप करते हुए चढ़ाने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव को मानवता का रक्षक भी बताया गया है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल विष निकला था। इससे संसार के सभी प्राणी व्याकुल होने लगे थे, किंतु भगवान शिव ने उसको पीकर मानवता की रक्षा की थी।