बिहार की राजनीति में कभी लालू यादव और नीतीश कुमार साथ-साथ थे
बिहार की राजनीति में कभी लालू यादव और नीतीश कुमार साथ-साथ थे। बात तीन दशक पूरानी है जब लालू और नीतीश कुमार के बीच रिश्तों में खटास शुरू हो गई थी।केंद्र में बीपी सिंह सरकार का पतन हो गया था। इसी के साथ नीतीश कुमार अब केंद्रीय मंत्री नहीं रह गए थे।
इधर लालू यादव आराम से गद्दी का लुफ्त उठा रहे थे और बिहार पर राज कर रहे थे। बीपी सिंह सरकार के पतन और नीतीश कुमार के केंद्रीय मंत्री नहीं रहने से लालू को अब कोई चुनौती देने वाला नहीं रह गया था। नीतीश कुमार समय जाया हो रहा था और लालू की कार्यशैली को देखकर वे हताश महसूस कर रहे थे।
और लालू यादव अपने वायदे को भूल गये थे
नीतीश कुमार की हैसियत सिर्फ एक सांसद भर की रह गई थी।वे सिर्फ सांसद के बूते अपना प्रभाव बढ़ाने में असमर्थ पा रहे थे।लालू यादव ने जो वायदे किये थे उस पर ध्यान देने का अब कोई उका इरादा नहीं रहा था। तब लालू ने गांधी मैदान से कहा था कि ”अब कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा, अब कोई बेईमानी नहीं होगी,हम यह कसम खाते हैं, नया लोक राज कायम करना है, जेपी और कर्पूरी के सपनों का बिहार बनाना है, वीपी सिंह के सिद्धांतों का बिहार बनाना है, लोक-राज लाना है, नए बिहार का निर्माण करना है”……।
लालू यादव ने स्टेट गेस्ट हाउस भी नहीं दिया था
लालू यादव ने बिहार को एक नए सपने का वचन दिया था .लेकिन तत्काल ही उन्होंने एक बुरे सपने को न्योता देना शुरू कर दिया. कारणों का ढेर लगते गया और नीतीश-लालू के बीच दीवार खड़ी हो गई. नई सरकार का संचालन कैसे किया जाना चाहिए इस बात को लेकर दोनों में मतभेद उत्पन्न हो गए, और बात बढ़ते बढ़ते व्यक्तिगत शत्रुता तक जा पहुंची. नई दिल्ली में जब वीपी सिंह की सरकार का 1990 में पतन हो गया और नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री नहीं रह गए. वह पटना लौट कर आए और स्टेट गेस्ट हाउस में ठहरने गए. लेकिन लालू ने उन्हें जगह देने से मना कर दिया. फिर उन्होंने पटना पश्चिम में पुनाई चौक में अपने इंजीनियर दोस्त अरुण कुमार के घर जाकर ठहरे। लालू यादव ने इसे भी बर्दाश्त नहीं किया और नीतीश कुमार की वह सुविधा भी छीन ली.