गोपाल दास नीरज की पुण्यतिथि 19 जुलाई के अवसर ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस की प्रस्तुति “काव्यांजलि”

 गोपाल दास नीरज की पुण्यतिथि 19 जुलाई के अवसर ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस की प्रस्तुति “काव्यांजलि”

ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) महाकवि-गीतकार गोपाल दास नीरज की पुण्यतिथि 19 जुलाई के अवसर पर वर्चुअल कार्यक्रम “काव्यांजलि” का आयोजन करने जा रहा है।

जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्टीय प्रभारी दीपक कुमार वर्मा और कला संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष देव कुमार लाल ने बताया कि महान कवि-गीतकार गोपाल दास नीरज की पुण्यतिथि 19 जुलाई के अवसर पर वर्चुअल कार्यक्रम काव्यांजलि का आयोजन संध्या आठ बजे से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम को जीकेसी कला- संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय महासचिव पवन सक्सेना और राष्ट्रीय सचिव श्रीमती श्वेता सुमन होस्ट करेंगी।

जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले गोपाल दास नीरज आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वह अपने पीछे अपनी अनमोल यादों को छोड़ गए हैं। पद्मभूषण से सम्मानित साहित्यकार गीतकार, लेखक कवि नीरज जी ने कई गीत लिखे और उन गीतों का जादू आज भी बरकरार है। नीरज जी ने अपनी लेखनी से साहित्यजगत, फिल्मजगत और काव्यमंचों पर अपनी विशिष्ठ पहचान बनायी। वह अपनी कविता और गीतों के जरिये हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।

पवन सक्सेना ने कहा कि सामान्य कायस्थ परिवार में जन्मे नीरज जी का बचपन काफी संघर्ष एवं अभाव से बीता। जीवन में आए विभिन्न कटु अनुभवों को नीरज जी ने अपने दिल की अनंत गहराइयों मे सहेज कर रखा और बाद में वहीं दर्द अपने गीतों में पिरोया। उनके के गीतों में जिंदगी की कशमकश को काफी गहराई से महसूस किया जा सकता है। यही वजह रही कि उनके गीतों में जिंदगी से जुडा संघर्ष स्पष्ट झलकता है। तभी तो नीरज लिखते हैं-ये प्यार हमने किया जिस तरह से उसका न कोई जवाब!,ज़र्रा थे लेकिन तेरी लौ में जलकरहम बन गए आफ़ताब, हमसे है ज़िंदा वफ़ा और हम ही से है ,तेरी महफ़िल जवाँजब हम न होंगे तो रो रोके दुनिया ढूँढेगी मेरे निशां …

श्रीमती श्वेता सुमन ने बताया कि हिंदी साहित्य के पुरोधा गोपाल दास नीरज जी की रचनाओं ने आम जन मानस के भावों को भी छूआ है। “हँस कहा उसने चलाती शाम आदमी चलता नही संसार में” ,अपनी पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने जीवन के सभी पहलुओं को दर्शाया और वह इतनी सशक्त है कि आज भी उसमें वही ऊष्मा का संचार होता है ,यह इसीलिए भी मुमकिन हुआ कि उनकी अभिव्यक्ति हमेशा मौलिक और बेबाक थी और यही कारण है कि उनकी रचनाएं साहित्य के लिए हो या फिल्मों के लिये। नीरज जी ने जीवन के सभी गंभीर पहलुओं को सरलता से उजागर किया।”ए भाई ज़रा देख के चलो आगे ही नही पीछे भी ऊपर ही नीचे भी…”जैसे गीत ने लोगों को काफी हद तक प्रेरित किया है।

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