रुद्राक्ष, हानिकारक ऊर्जा से इंसान को बचाता है- जितेंद्र सिन्हा

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पटना, 24 जुलाई 2023: भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष, हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से इंसान को बचाता है, इसलिए इसका बहुत महत्व है। रुद्राक्ष कवच की तरह नकारात्मक ऊर्जा से, असरदार रूप से, बचाने का काम करता है। इसलिए यह अपने आप में एक अलग विज्ञान है। अर्थव वेद में रुद्राक्ष के संबंध में बताया गया है कि रुद्राक्ष के ऊर्जा को, लोग अपने हित के लिए और दूसरे को अहित करने के लिए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
रुद्राक्ष के संबंध में कहा गया है कि खुले में या जंगलों में रहने वाले साधु-संयासी अनजाने स्रोत का पानी नही पीते है, क्योंकि अक्सर किसी जहरीला गैस या किसी वजह से पानी जहरीला भी हो सकता है, रुद्राक्ष की मदद से यह जाना जा सकता है कि वह पानी पीने लायक है या नही। इसके लिए रुद्राक्ष को पानी के ऊपर लटकाना होगा । यदि पानी के ऊपर रुद्राक्ष घड़ी की दिशा में घूमता है तो इसका अर्थ हुआ कि पानी पीने योग्य है और यदि रुद्राक्ष घड़ी के उल्टे दिशा में घूमता है तो इसका अर्थ हुआ कि पानी पीने लायक नहीं है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है। रुद्र अर्थात् शिव और अश्र अर्थात् आँसू। तात्पर्य यह है की शिव के आँसू ही रुद्राक्ष है, जो फल के रूप में उत्पन्न हुए है। इस संदर्भ में शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में उल्लेख मिलता है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शंकर को माना गया है। शिवपुराण, स्कन्दपुराण, लिंगपुराण आदि में रुद्राक्ष के सम्बंध में आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक प्रकरण मिलते है।

भारत में रुद्राक्ष, विशेषकर हिमालय के आंचलिक भागों में पाया जाता है। बिहार की सीमा से जुड़ा नेपाल के भोजपुर जिले में रुद्राक्ष की पैदावार अधिक होती है। इसके अतिरिक्त तिब्बत, इंडोनेशिया, सुमात्रा, चीन, जावा, मलेशिया, मेडागास्कर, पैसिफिक आइलैंड में भी रुद्राक्ष पैदा होती है। पुराणों में रुद्राक्ष एकमुखी से लेकर इक्कीसमुखी तक का उल्लेख है, जबकि सामान्य रूप से चौदहमुखी तक का ही रुद्राक्ष मिलता है।