‘साइलेंस…. कैन यू हीयर इट?’ Film Review

 ‘साइलेंस…. कैन यू हीयर इट?’ Film Review
Silence... Can You Hear It review - Rediff.com movies

फिल्म- साइलेंस….कैन यू हीयर इट?
निर्देशक: अबान भरुचा देवहंस
ड्यूरेशन- 136 मिनट
ओटीटी- Zee5
मर्डर मिस्ट्री फिल्म्स में दर्शकों को मूर्ख समझने की गलती बहुत से निर्देशक कर बैठते हैं. अमूमन इस तरह की फिल्म्स में एक या दो किरदार ऐसे होते हैं जो दर्शकों को उलझा कर रखते हैं या फिर हर बार शक की सुई किसी नए किरदार पर घूम जाती है जिस से निर्देशक की कमी छुप जाती है. ऐसा कुछ करने की कोशिश अबान भरुचा देवहंस ने अपनी फिल्म “साइलेंस….कैन यू हीयर इट? (Silence… can you hear?)” में की है. फिल्म की रफ्तार फिल्म की दुश्मन है. जासूसी उपन्यास की तरह, एक हैरतअंगेज क्लाइमेक्स के लिए पूरी फिल्म बनाई गई है. फिल्म के हीरो मनोज बाजपेयी के अलावा प्रत्येक दर्शक को आभास हो चुका होता है कि हत्यारा कौन है.

एक अच्छी सस्पेंस फिल्म की जरूरत होती है एक सरल सी कहानी जिसमें बहुत सारे पेंच हों. हर किरदार, कहानी को एक नई दिशा में ले जाए. हर करैक्टर में कोई न कोई ऐसी खास बात, तकिया कलाम या झक्की किस्म की आदत हो जो देखने वालों के मन में कन्फ्यूजन बनाए रखे और ये न भी हो तो कहानी में ऐसी घटनाएं होती रहे जो कि देखने वालों को हमेशा सोचने पर मजबूर करता रहे. एक सफल सस्पेंस या मर्डर मिस्ट्री में परतें जब खुलती हैं तो दर्शकों के साथ खुलती है. साइलेंस में ऐसा कुछ नहीं होता.

मनोज बाजपेयी एक पुलिस वाले की भूमिका में हैं, पहले भी कर चुके हैं. बीवी और बिटिया से अलग रहते हैं और कॉम्पेन्सेशन के तौर पर बिटिया की पसंद की अतरंगी स्लोगन वाली टीशर्ट पहनते हैं. थोडे झक्की बनने का प्रयास कर रहे हैं. जो भी फिल्म में हैं सिर्फ मनोज की वजह से हैं. इनके साथ हैं प्राची देसाई, जो कि एक इंस्पेक्टर बनी हैं. किरदार में कुछ था ही नहीं और प्राची पर जंचा भी नहीं. द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में राहुल गाँधी की भूमिका निभा चुके, एमी अवार्ड के लिए नामांकित अभिनेता अर्जुन माथुर इस बार भी एक एमएलए की भूमिका में हैं. अभिनेता अच्छे हैं मगर रोल का चयन चूक गया है. बाकी किरदार और उनके अभिनेता, स्क्रिप्ट ही की तरह बोरिंग हैं.

कहानी लिखी भी अबान ने ही है, क्योंकि उन्हें मर्डर मिस्ट्रीज बहुत पसंद हैं. मगर इसके बावजूद, स्क्रिप्ट ठीक तरह से पकने से पहले ही शूट कर ली गई ऐसा लगता है. किसी को समझ नहीं आता कि मर्डर किसने किया है मगर मनोज बाजपाई को सबूत के तौर पर ब्रेसलेट का टूटा हिस्सा मिलता है और क्लाइमेक्स में खूनी वही टूटा हुआ ब्रेसलेट पहन कर मनोज से मिलने आता है. सबूत जलाने या मिटाने का कोई उपक्रम किया ही नहीं गया, ये सोच कर हैरानी होती है. मर्डर की तहकीकात करते करते एसीपी मनोज बाजपेयी और उनके कमिश्नर के बीच भिडंत और मनोज को केस से हटा देना भी फिल्म का हिस्सा है जो कि पूरी तरह लचर है.

थोडी गली गलौच है. नहीं रखते तो भी चल जाता. मनोज के कंधे पर फिल्म का सलीब रखा गया था. उनके कन्धों ने भी जवाब दे दिया और फिल्म धडाम की आवाज के साथ बिखर गयी. फिल्म नहीं देखेंगे तो कुछ नहीं बिगडेगा. समय बचाइए.

Silence… Can You Hear it? review: Manoj Bajpayee is the brain of twisty  mystery

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