जातिगत जनगणना को लेकर तेजस्वी की प्रेस कांफ्रेंस, बोले- नही मानी सरकार तो देंगे धरना
जातीय जनगणना को लेकर बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस की. प्रेसवार्ता में तेजस्वी के अलावा प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के अलावा और नेता मौजूद थे. तेजस्वी ने कहा कि सदन से सड़क तक राजद के सभी लोग ने संघर्ष किया. विधानसभा में इसे दो बार सर्वसम्मति से इसे पारित कर केंद्र को भेज दिया गया. पिछले मानसून सत्र में हमारी मांग थी कि एक कमेटी बनाकर प्रधानमंत्री से मिलने चलना चाहिए.
तेजस्वी यादव ने कहा कि सभी विपक्षी पार्टियों के साथ हम मुख्यमंत्री से मिले और आस्वासन भी मिला. चार तारीख को मुख्यमंत्री पत्र लिखकर समय मांगा पर अबतक समय नहीं मिला. दूसरी मांग हमने की थी कर्नाटक के तर्ज पर बिहार में भी जातीय जनगणना हो. लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीट एनडीए को मिला. बिहार में 40 सीट में एनडीए को 39 सीटी मिला. उस राज्य के मुख्यमंत्री को समय क्यों नहीं मिल रहा है. अब इसमे विलंब हो रहा है. संसद में केंद्र सरकार ने जवाब दिया इससे स्पष्ट है कि वो जातिगत जनगणना नहीं करेंगे.
नेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा कि ये अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान के लिए है. जब आप बीमारी नहीं जानते उसका इलाज संभव नहीं और बीमारी जानने के लिए आपको जातीय जनगणना होना जरूरी है. हमारी मांग है कि जातिगत जनगणना हो और उसे पब्लिक डोमेन में लाया जाए. अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तरफ से कोई सकारात्मक रवैया नही देखने को मिल रहा तो आज हमने भी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है. अगर मुख्यमंत्री को एक सप्ताह में समय मिल रहा तो ये मुख्यमंत्री का अपमान है. इसलिए हमने भी चिठ्ठी लिखकर गुहार लगाई है कि हमे समय मिलना चाहिए.
तेजस्वी ने कहा कि जातीय जनगणना के बाद गरीबों के लिए अलग से योजना बनेगी लोगो को नौकरी मिलेगी, आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. अगर एक कमरे में चार लोगों की जगह है और आप उसमे 15 लोगों को रखेंगे तो कमरा बढ़ाने की आवश्यकता होगी. असल पिक्चर सामने आने के बाद चीजे सफल होगी. हम सभी दलों से मांग करेंगे कि दिल्ली जंतर-मंतर पर हम आंदोलन करे.
उन्होंने कहा कि चूंकि इस विषय पर मुख्यमंत्री को निर्णय लेना है. एक सप्ताह में उन्हें समय मिला तो उनकी अहमियत क्या रहेगी जबकि वो एक अनुभवी मुख्यमंत्री हैं. जब कोई विकल्प नहीं बचता है तो हम तो धरन पर बैठेंगे. जंतर-मंतर पर या कहीं और धरने पर बैठ सकते हैं. किसान आंदोलन पर बोले कि एमएसपी होनी चाहिए. जब जनता जनप्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है और वो जब जनता की बात नहीं सुनते. इस तरह की बात होती है. अगर कोई आपका पेट भर रहा है और आप जब उसका नहीं सुन रहे हैं तो आप किसका सुनेंगे.