किसान आंदोलन ने एक बार फिर भाजपा की मुशकिलें बढ़ा दी हैं
शुक्रवार को हुई जाट महापंचायत में किसानों का समर्थन करने का फैसला लिया गया जिसमें दस हजार से ज्यादा किसानों की उपस्थिति दर्ज की गई। उत्तर प्रदेश में हुई इस बैठक में हरियाणा के कुछ जाट भी शामिल थे और कुछ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर की तरफ बढ़ रहे थे। किसान समर्थन में जाटों का इस तरह उतरना भाजपा के लिए एक खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
किसान आंदोलन ने एक बार फिर भाजपा की मुशकिलें बढ़ा दी हैं। महापंचायत में जुटी किसानों की भारी संख्या ने सभी को चौंका कर रख दिया। राकेश टिकैत के आंसुओं को देखने के बाद हरियाणा और उत्तर प्रदेश के जाट दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे। यह भाजपा के लिए चिंता की बात हो सकती है, क्योंकि जाटों का आंदोलन में इस तरह से शामिल होना राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकता है। पार्टी इस समुदाय विशेष को अपने समर्थक के रूप में देखती है, लेकिन अब उसे चिंता सता सकती है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि उन्हें डर है कि किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ”हम सब कुछ देख रहे हैं। अभी यह कहना भी जल्दी होगी कि हमें जाटों से समस्या होगी। हम सतर्क हैं। हमारा पार्टी के नेताओं और खाप (कबीले) के बुजुर्गों तक पहुंचना जारी है।”
लगभग 2 महीनों से कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डरों पर बैठे किसानों का आंदोलन गणतंत्र दिवस के बाद कमजोर पड़ गया। तमाम बॉर्डरों से किसान उठने लगे और वापसी की ओर बढ़ें। लेकिन तस्वीर तब बदल गई जब भारतीय किसान यूनियन के नेता के आंसू पूरे देश ने देखे। उसके बाद लोग भारी मात्रा में वापस दिल्ली बॉर्डरों पर आने लगे।
शुक्रवार को हुई महापंचायत में किसानों की भारी भीड़ देखी गई, दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर भी लोगों का जमावड़ा लगा। शुक्रवार को भी किसानों का आना जारी रहा। विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल और इंडियन नेशनल लोकदल ने उन किसानों को समर्थन दिया जो कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
हालांकि भाजपा अब तक हरियाणा में असंतोष की आवाज़ों को दबाने में कामयाब रही है, जहां वह जननायक जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार चलाती है, जो जाटों को अपने प्राथमिक वोट आधार के रूप में गिनाती है। पार्टी के नेताओं ने कहा कि यह 2016 जैसी हिंसा को फिर से देखना नहीं चाहती है जिसमें जाटों ने आरक्षण के लिए हिंसक प्रदर्शन किया था।
एक दूसरे नेता ने कहा, “2016 के जाट आंदोलन के बावजूद, पार्टी ने हरियाणा में अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाबी हासिल की, लेकिन हालिया घटनाओं में समस्याएं पैदा करने की क्षमता है।”
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद अनिल जैन ने कहा कि आंदोलन राजनीति से प्रेरित है। लेकिन विशेषज्ञों ने कहा कि यह पार्टी की समस्या का समाधान नहीं है।
राजनीतिक टिप्पणीकार मनीषा प्रियम ने कहा कि सिखों और जाटों का एक साथ आना एक संदेश है कि पहचान की राजनीति पर्याप्त नहीं है।