हिन्दू अर्थशास्त्र’ को पुनर्जीवन देनेवाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज 109 वीं जयंती
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज 109वीं जयन्ती है। समाज के निर्धनतम व्यक्ति को सबल बनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए हिन्दू अर्थशास्त्र की पुनर्स्थापना के प्रबल पक्षधर दीनदयालजी एक विचारक, दार्शनिक और एक समावेशी विचारधारा के समर्थक थे जो एक सुदृढ़ भारत का निर्माण करना चाहते थे। गुरु गोलवरकर जी ने उनको सर्वगुण संपन्न कार्यकर्त्ता के रूप में इंगित करते हुए कहा था कि उनके जैसा कर्तव्यनिष्ठ -कर्मयोगी -दूरदर्शी प्रतिभा (किसी भी) राष्ट्र को वरदान है। पंडित दीनदयाल जी ने कहा था कि हमें अपनी राजनैतिक एवं आर्थिक व्यवस्था का भारतीयकरण करना चाहिए।
भारतीयकरण का आधार इन दो शब्दों में है ‘स्वदेशी’ एवम ‘विकेन्द्रीकरण’ तथा इसकी प्रकिया है स्वदेशी को युगानुकूल तथा विदेशी को स्वदेशानुकूल बनाकर ग्रहण करना चाहिए। अपने विचारों को जन -जन तक पहुंचाने के लिए आपने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ऐसे समय में भी स्वदेशी पर बल दिया था जब तत्कालीन सरकारों ने विदेशी आयात पर आधारित आर्थिक वृद्धि के मॉडल को अपनाया था। उन्होने ‘अंत्योदय का संकल्प ‘समाज के सामने रखा।
यह दर्शन समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार तथा मुख्य धारा में पहुँचाने वाला था.’दरिद्र नारायण से अंत्योदय’ तक की यह यात्रा भारतीय आध्यात्मिक सोच का सदियों से चली आ रही सामाजिक -आर्थिक अनुशासन है, जो भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र सदा से रहा है.’ सबका साथ सबका विकास’ की अवधारणा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा पर आधारित है। उनका मानना था कि अर्थ का अभाव जितना हानिकारक होता है, उतना ही हानिकारक अर्थ का प्रभाव होता है -दोनों स्थितियां ही समाज तथा देश के लिए घातक है। इसके निदान के लिए आपने ‘एकात्ममानववाद’ की संकल्पना दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अपनी सरकार की अधिकांश जनहितकारी योजनाओं के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को सामने रखकर क्रियान्वित किया है। उन्होने इस सम्बन्ध में कहा था – ” पंडित दीनदयाल उपाध्याय महान विचारक थे , उनके बारे में पुरे देश को बताया जाना चाहिए , अंत्योदय उनका मिशन था जिसे पूरा करना हम सबका दायित्व है “। ‘एकात्म मानववाद’ एक ऐसी विचारधारा है जिसके केंद्र में व्यक्ति, फिर व्यक्ति से जुड़ा परिवार फिर परिवार से जुड़ा समाज, राष्ट्र, विश्व फिर अनंत ब्रह्माण्ड समाविष्ट है और सभी एक दूसरे से जुड़कर अपना अस्तित्व कायम रखते हैं । इस दर्शन में समाज केंद्रित मानव व्यवहार और उससें संबद्ध आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक व्यवहार की परिकल्पना प्रस्तुत की गई है।