आज मनाया जा रहा है अनंत चतुर्दशी व्रत, जानें पूजा विधि और व्रत कथा
चतुर्दशी व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह व्रत 19 सितंबर यानी आज है। अनंत यानी जिसके न आदि का पता है और न ही अंत का। अर्थात वे स्वयं श्री हरि ही हैं। बता दें कि इस बार अनंत चतुर्दशी तिथि 19 सितंबर रविवार को सुबह 6 बजकर 7 मिनट से शुरु होकर 20 सितंबर सोमवार को सुबह साढ़े पांच बजे समाप्त होगा।
जानिए पूजा विधि :
इस व्रत में स्नानादि करने के बाद अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत को सामने रखकर हवन किया जाता है। उसके बाद अनंत देव का ध्यान करके पूजा की जाती हैं। इस शुद्ध अनंत को पुरुष दाहिनी और स्त्री बायीं हाथ में बांधते हैं।
इस व्रत में एक समय मुख्य रूप से सिमई युक्त, बिना नमक का भोजन किया जाता है। निराहार रहें, तो श्रेष्ठ है। इसी दिन प्रथम पूज्य गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।पुराणों में अनंत चतुर्दशी की कथा के युधिष्ठिर से सम्बंधित होने का उल्लेख किया गया है। जिसमें पांडवों के राज्यहीन हो जाने पर भगवान l श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया था। ऐसा करने से पांडवों को हर हाल में राज्य वापस मिलेगा, इसका भरोसा दिया था। युधिष्ठिर ने जब पूछा- यह अनंत कौन हैं? तब श्रीकृष्ण ने कहा कि श्रीहरि के स्वरूप हैं। इस व्रत को विधि विधान से करने से जीवन में आ रहे समस्त संकट खत्म होता हैं।
जानिए अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा :
सुमंत नामक एक वशिष्ठ गोत्री ब्राह्मण थे। उनका विवाह महर्षि भृगु की कन्या दीक्षा से हुआ। इनकी पुत्री का नाम सुशीला था। दीक्षा के असमय निधन के बाद सुमंत ने कर्कशा से विवाह किया। पुत्री का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हुआ। लेकिन कर्कशा के क्रोध के कारण सुशीला एकदम साधनहीन हो गई। वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पंहुची, तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते देखा। महिलाओं ने अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा बताते हुए कहा कि अनंत सूत्र बांधते समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए।
‘अनंत संसार महासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते