जानिए वट सावित्री व्रत के पूजा और सामग्री के बारे में
हर साल वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।इस साल यह व्रत 10 जून 2021, गुरुवार को रखा जाएगा। यह व्रत हर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र का वरदान पाने के लिए रखती है। सुहागिन के लिए वट सावित्री व्रत खास है। वट सावित्री व्रत का महत्व ही महत्व रखता है जितना की करवा चौथ का व्रत।
वट सावित्री पूजा कैसे की जाती है-
सुहागिन महिलाएं इस व्रत को करती है।इसमें वट के वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। महिलाएं को कलावा बांधते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं और व्रत रखती हैं।
जानें वट सावित्री पूजा की विधि-
- सुहागिन महिलाएं अमावस्या तिथि को सुबह उठकर स्नान कर लें।
- लाल या पीला साड़ी पहन लें।
- दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार कर लें।
- व्रत का संकल्प लें।
- वत वृक्ष के नीचे आसन ग्रहण करें।
- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें।
- बरगद के पेड़ में जल,पुष्प,अक्षत,फूल,मिष्ठान आदि को चढ़ाएं।
- कम से कम 5 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें और उन्हें रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
- उसके बाद पंखे से वृक्ष को हवा दें।
- हाथ में काले चने लेकर व्रत की संपूर्ण कथा सुनें।
सामग्री–
वट सावित्री व्रत के लिए विशेष सामग्री लाल – पीले रंग का कलवा या सूत्र ले लें, कुमकुम या रोली,बांस का पंखा,धूप,दीपक,घी – बाती, सुहागिनों के सोलह श्रृंगार की सामग्री, पूजा के लिए सिंदूर, पांच प्रकार के फल, पुष्प – माला,पुरिया,गुलगुले, भिगोएं चने,जल भरा हुआ कलश, बरगद का फल, बिछाने के लिए लाल रंग का आसन इत्यादि होना चाहिए।
जानें इस व्रत का राज –
वट सावित्री व्रत को लेकर ऐसी मान्यताएं हैं कि माता सावित्री ने अपने पति सत्यवान को मौत के मुंह से निकाली थी।इसके लिए उन्हें वट वृक्ष के नीचे ही कठोर तपस्या करनी पड़ी थी। माता सावित्री अपने पति के प्राण के लिए यमराज के द्वार तक पहुंच गयी थी। उसके बाद यमराज को सावित्री के पति सत्यवान का प्राण लौटाना पड़ा था। यमराज सावित्री का पति का प्राण चने के रूप में लौटाया था। सावित्री माता ने उस चना को लाकर अपने पति के मुंह में रखकर पुनः जीवित कर लिया। यही है इस व्रत का राज।